अंग्रेजों का बंगाल पर अधिकार  

अंग्रेजों का बंगाल पर अधिकार

अंग्रेजों का बंगाल पर अधिकार  :-

बंगाल में नवाब

अलीवर्दी खां :

  • जिस समय अंग्रेज़ और फ्रांसीसी, अपनी प्रभुता के लिए, दक्षिण में लड़ रहे थे उस समय बंगाल में बड़ा राज्य-विप्लव हो रहा था.
  • नवाबी का पतन हो रहा था और अंग्रेज़ अपनी शक्ति बढ़ा रहे थे.
  • बंगाल का सूबा मुग़ल साम्राज्य का एक भाग था. मुग़ल सम्राट ही सूबेदार की नियुक्ति करते थे.
  • 1701 ई. में मुर्शिद कुली खां बंगाल का दीवान था. वह अंग्रेजों को देखकर जलता था.
  • अंग्रेजों ने अपनी स्थिति को सुरक्षित बनाने के लिए, 1717 ई. में दिल्ली के सम्राट से एक नया फरमान हासिल कर लिया.
  • 1741 ई. में अलीवर्दी खां बंगाल का सूबेदार हो गया. वह एक योग्य शासक था.
  • औरंगजेब से एक फरमान हासिल कर अंग्रेजों ने कलकत्ता में फोर्ट विलियम नाम का किला बनवा लिया था.
  • कलकत्ता एक बड़ा नगर हो गया था. अलीवर्दी खां समझदार इंसान था.
  • उसे अंग्रेजों की नीयत पर संदेह हो गया. वह कहा करता था, “तुम लोग व्यापारी हो, तुम्हें किलों से क्या काम? जब तुम मेरे संरक्षण में हो ही तो तुम्हें शत्रु से बचने के लिए ये सब करने की क्या जरुरत है?”
  • वह जानता था कि ये लोग किसी समय खतरनाक हो सकते हैं.
  • वह अंग्रेजों की उपमा शहद की मक्खियों के छत्तों से देता था और कहता था कि “तुम उनसे शहद निकाल सकते हो परन्तु यदि उनके छत्तों को छेड़ोगे तो मक्खियाँ काटकर तुम्हारी जान ले लेंगी.”
  • अलीवर्दी खां 1756 में मर गया और उसका पोता मिर्जा मुहम्मद – जो इतिहास में सिराजुद्दौला के नाम से प्रसिद्ध है – गद्दी पर बैठा.
  • उस समय वह मात्र 23 साल का था. अंग्रेजों का बंगाल पर अधिकार  

सिराजुद्दौला :-

  • सिराजुद्दौला भले ही नवाब बन गया पर उसे कई विरोधियों का सामना करना पड़ा.
  • उसकी सबसे बड़ी विरोधी और प्रतिद्वंदी उसके परिवार से ही थी और वह थी उसकी मौसी.
  • उसकी मौसी का नाम घसीटी बेगम था.
  • घसीटी बेगम का पुत्र शौकतगंज जो स्वयं पूर्णिया (बिहार) का शासक था, उसने अपने दीवान अमीनचंद और मित्र जगत सेठ के साथ सिराजुद्दौला को परास्त करने का सपना देखा.
  • मगर सिराजुद्दौला पहले से ही सावधान हो चुका था.
  • उसने सबसे पहले घसीटी बेगम को कैद किया और उसका सारा धन जब्त कर लिया.
  • इससे शौकतगंज भयभीत हो गया और उनसे सिराजुद्दौला के प्रति वफादार रहने का वचन दिया.
  • पर सिराजुद्दौला ने बाद में उसे युद्ध में हराकर मार डाला.
  • इधर ईस्ट इंडिया कंपनी अपनी स्थिति मजबूत कर चुकी थी.
  • दक्षिण में फ्रांसीसियों को हराकर अंग्रेजों के हौसले बुलंद थे.
  • मगर वे बंगाल में भी अपना प्रभुत्व जमाना चाहते थे. पर अलीवर्दी खां ने पहले से ही सिराजुद्दौला को सलाह दे दिया था कि किसी भी हालत में अंग्रेजों का दखल बंगाल में नहीं होना चाहिए.
  • इसलिए सिराजुद्दौला भी अंग्रेजों को लेकर सशंकित था. अंग्रेजों का बंगाल पर अधिकार  

ब्लैक होल – काल कोठरी की घटना :-

  • अंग्रेजों के लगातार उद्दंडतापूर्वक व्यवहार पर नवाब को क्रोध आने लगा.
  • उसने कासिमबाजार की कोठी पर अधिकार करके कलकत्ते पर धावा बोल दिया. गवर्नर, सेनापति तथा और बहुत-से अंग्रेज़ भाग निकले.
  • किले में कुछ सैनिक ही रह गये.
  • हॉलवेल (Holwell) नाम का एक रिटायर्ड सर्जन सेनानायक चुना गया.
  • उसने दो दिन तक किले की रक्षा की किन्तु अंत में किला नवाब को सौंप दिया.
  • कहा जाता है कि नवाब के सिपाहियों ने 146 अँगरेज़ कैदियों को एक छोटी-सी कोठारी में बंद कर दिया था.
  • जून का महिना था. गर्मी से तड़प-तड़प कर बहुत-से कैदी रात में मर गये.
  • दूसरे दिन सबेरे जब वह कोठारी खोली गई तो उसमें केवल 23 अँगरेज़ जीते निकले.
  • इस बात पर यूरोपीय लेखक भी मानते हैं कि नवाब को इस विषय में कोई जानकारी नहीं थी.
  • कुछ विद्वानों का कहना है कि ब्लैक होल की घटना कपोल-कल्पित है.
  • ब्लैक होल की घटना का वर्णन हॉलवेल ने इस उद्देश्य से बहुत नमक-मिर्च मिलाकर किया है कि अंग्रेज़ उत्तेजित होकर नवाब से बदला लेने का प्रयत्न करें.

अलीनगर की संधि :-

  • 9 फ़रवरी, 1757 को क्लाइव ने नवाब के साथ एक संधि (अलीनगर संधि) की जिसके अनुसार मुग़ल सम्राट द्वारा अंग्रेजों को दी गई सारी सुविधायें वापस मिली जानी थीं.
  • नवाब को लाचार होकर अंग्रेजों को सारी जब्त फैक्टरियाँ और संपत्तियाँ लौटाने के लिए बाध्य होना पड़ा.
  • कम्पनी को नवाब की तरफ से हर्जाने की रकम भी मिली.
  • नवाब अन्दर ही अन्दर बहुत अपमानित महसूस कर रहा था.

प्लासी का युद्ध :-

  • अंग्रेज़ अलीनगर की संधि से भी संतुष्ट नहीं हुए.
  • वे सिराजुद्दौला को गद्दी से हटाकर किसी वफादार नवाब को बिठाना चाहते थे जो उनके कहे अनुसार काम करे और उनके काम में रोड़ा न डाले. क्लाइव ने नवाब के खिलाफ षड्यंत्र करना शुरू कर दिया.
  • उसने मीरजाफर (Mir Jafar) से एक गुप्त संधि की और उसे नवाब बनाने का लोभ दिया.
  • इसके बदले में मीरजाफर ने अंग्रेजों को कासिम बाजार, ढाका और कलकत्ता की किलेबंदी करने, 1 करोड़ रुपये देने और उसकी सेना का व्यय सहन करने का आश्वासन दिया.
  • इस षड्यंत्र में जगत सेठ, राय दुर्लभ और अमीचंद भी अंग्रेजों से जुड़ गए.
  • अब क्लाइव ने नवाब पर अलीनगर की संधि भंग करने का आरोप लगाया.
  • इस समय नवाब की स्थिति अत्यंत दयनीय थी. दरबारी-षड्यंत्र और अहमदशाह अब्दाली के आक्रमण से उत्पन्न खतरे की स्थिति ने उसे और भी भयभीत कर दिया.
  • उसने मीरजाफर को अपनी तरफ करने की कोशिश भी की पर असफल रहा.
  • नवाब की कमजोरी को भाँपकर क्लाइव ने सेना के साथ प्रस्थान किया.
  • नवाब भी राजधानी छोड़कर आगे बढ़ा. 23 जून, 1757 को प्लासी के मैदान में दोनों सेनाओं की मुठभेड़ हुई.
  • यह युद्ध नाममात्र का युद्ध था. नवाब की सेना के एक बड़े भाग ने युद्ध में हिस्सा नहीं लिया.
  • आंतरिक कमजोरी के बावजूद सिराजुद्दौला की सेना, जिसका नेतृत्व मीरमदन और मोहनलाल कर रहे थे, ने अंग्रेजों की सेना का डट कर सामना किया.
  • परन्तु मीरजाफर के विश्वासघात के कारण सिराजुद्दौला को हारना पड़ा
  • वह जान बचाकर भागा, परन्तु मीरजाफर के पुत्र मीरन ने उसे पकड़वा कर मार डाला.

युद्ध के परिणाम :-

  1. मीरजाफर को क्लाइव ने बंगाल का नवाब घोषित कर दिया. उसने कंपनी और क्लाइव को बेशुमार धन दिया और संधि के अनुसार अंग्रेजों को भी कई सुविधाएँ मिलीं.
  2. बंगाल की गद्दी पर एक ऐसा नवाब आ गया जो अंग्रेजों के हाथों की कठपुतली मात्र था.
  3. प्लासी के युद्ध (The Battle of Plassey) ने बंगाल की राजनीति पर अंग्रेजों का नियंत्रण कायम कर दिया.
  4. अंग्रेज़ अब व्यापारी से राजशक्ति के स्रोत बन गये.
  5. इसका नैतिक परिणाम भारतीयों पर बहुत ही बुरा पड़ा. एक व्यापारी कंपनी ने भारत आकर यहाँ से सबसे अमीर प्रांत के सूबेदार को अपमानित करके गद्दी से हटा दिया और मुग़ल सम्राट तमाशा देखते रह गए.
  6. आर्थिक दृष्टिकोण से भी अंग्रेजों ने बंगाल का शोषण करना शुरू कर दिया.
  7. इसी युद्ध से प्रेरणा लेकर क्लाइव ने आगे बंगाल में अंग्रेजी सत्ता स्थापित कर ली.
  8. बंगाल से प्राप्त धन के आधार पर अंग्रेजों ने दक्षिण में फ्रांसीसियों पर विजय प्राप्त कर लिया.

बक्सर का युद्ध :-

  • मीरकासिम ने मुगल-सम्राट तथा अवध के नवाब वजीर के साथ मेल करके अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ने की तैयारी की.
  • उनकी सब सेना में मिलाकर चालीस हजार से साठ हजार तक सैनिक थे.
  • वे सब बक्सर पहुँचे. 23 अक्टूबर, 1764 ई. को जब लड़ाई हुई तो वे हार गए.
  • अंग्रेजों की सेना में कुल 7,072 सिपाही (जिनमें से 857 गोर थे) और 20 तोपें थीं. मीरकासिम बड़ी वीरता के साथ लड़ा परन्तु हार गया. उसकी पराजय का प्रधान कारण यह था कि मुग़ल-सम्राट तथा अवध के नवाब ने दिल खोलकर उसकी सहायता नहीं की.
  • शाहआलम अंग्रेजों की शरण में आ गया. मीरकासिम और नवाब वजीर लड़ाई के मैदान से भाग निकले.
  • बक्सर के युद्ध ने प्लासी के काम को पूरा कर दिया.
  • इस विजय ने वास्तव में भारत में अंग्रेजों की शक्ति को जमा दिया. अंग्रेजों की प्रतिष्ठा और भी बढ़ गई, विशेषतः इसलिए कि मुग़ल-सम्राट और उसके वजीर भी उनसे हार गए.
  • मीरजाफर फिर नवाब हो गया.
  • परन्तु 1765 ई. में उसकी मृत्यु हो गई. उसके बाद उसका बेटा नजमुद्दौला गद्दी पर बैठा. वह अंग्रेजों के हाथ में कठपुतली की तरह नाचता था और उसके राज्य में अंग्रेजों ने पूर्ण अधिकार स्थापित कर लिया.

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