मध्यप्रदेश के वन Forests of MP
- Forests of MP मध्यप्रदेश के वन ,4 अप्रैल 2005 को म.प्र. की नई वन नीति की घोषणा की गई।
- राष्ट्रीय कृषि अयोग की रिपोर्ट के आधार पर म.प्र. राज्य वन विकास निगम लिमिटेड, भोपाल की स्थापना 24 जुलाई 1975 को (कंपनी अधिनियम 1956 के अंतर्गत) किया गया है।
- म.प्र. भारत का सर्वाधिक वनाच्छादित राज्य है। अरूणाचल प्रदेश के और छत्तीसगढ़ क्रमशः दूसरे और तीसरे स्थान पर हैं।
- वर्ष 2019 में मध्यप्रदेश में 29 जिलों में 925 वनग्राम हैं।
- देश के वन क्षेत्र में म.प्र. के वन क्षेत्र का प्रतिशत 10.66 प्रतिशत है।
- मध्यप्रदेश में प्रति व्यक्ति वन क्षेत्र 0.12 वर्ग किमी है जबकि राष्ट्रीय स्तर पर औसत 0.07 प्रतिशत है।
Forests of MP
- खंडवा, जबलपुर एवं रीवा तीन सर्वाधिक बड़े वनवृत हैं।
- सर्वाधिक आरक्षित वनवृत खंडवा है।
- सर्वाधिक सरंक्षित वनवृत छतरपुर है।
- वनों को प्राशसनिक आधार पर संरक्षित, आरक्षित, एवं अवर्गीकृत रूप से वर्गीकृत किया गया हैं
- राष्ट्रीय वन नीति 1988 के तहत राज्य में वनों को संयुक्त वन प्रबंधन के तहत लाया जाता है।
- भारतीय वन प्रबंधन संस्थान भोपाल में है जिसकी स्थापना 1982 में की गई थी।
- मध्यप्रदेश में साल बीज का राष्ट्रीयकरण सन 1975 में किया गया।
- मध्यप्रदेश में लघु वनोपज संघ द्वारा ‘एकलव्य शिक्षा विकास योजना‘ नवंबर 2010 से प्रारंभ की गई है।
- वनों का शत प्रतिशत राष्ट्रीयकरण करने वाला देश का प्रथम राज्य है।
- वनों का राष्ट्रीयकरण वर्ष 1970 में किया गया।
- सर्वप्रथम तेंदूपत्ता का राष्ट्रीयकरण किया गया।
- पर्यावरणीय दृष्टि से एक तिहाई 33 प्रतिशत भाग वन होना चाहिए।
- मध्यप्रदेश के कुल भौगोलिक क्षेत्र 308252 वर्ग किलोमीटर में से 77522 वर्ग किलोमीटर में वन हैं।
मध्यप्रदेश के वन
- म.प्र. आर्थिक समीक्षा 2018-19 के अनुसार प्रदेश में 30.72 प्रतिशत वन हैं।
- म.प्र में स्ट्रिक्ट्स डेन्ड्रोकैलस प्रजाति के बॉस पाये जाते हैं।
- प्रदेश में बालाघाट में राजकीय वन महाविद्यालय है।
- इंडियन इंस्टियूट ऑफ फारेस्ट मैनेजमेंट भोपाल में है।
- वन अनुसंधान संस्थान देहरादुन का क्षेत्रीय कार्यालय म.प्र. के जबलपुर में है।
- सर्वाधिक आरक्षित वन खंडवा में हैं।
- उज्जैन वन वृत में सबसे कम आरक्षित वन हैं।
- म.प्र. वन जीव संरक्षण अधिनियम 1974 में पारित हुआ।
- म.प्र. वन विकास निगम की स्थापना 24 जुलाई 1975 में की गई।
- प्रदेश सामाजिक वानिकी योजना 1976 में प्रारंभ की गई।
- म.प्र. के शिवपुरी में प्रादेशिक वन स्कूल स्थापित है।
- बैतूल एवं रीवा में वन पहरेदारों का ट्रेनिंग स्कूल है।
- राज्य के 52+1 जिलों को 16 क्षेत्रीय वन मंडल में विभक्त किया गया है।
- म.प्र के उमरिया में लाख बनाने का सरकारी कारखाना है।
- म.प्र के बानमौर एवं शिवपुरी में खेर से कत्था बनाने का कारखाना है।
- म.प्र. मे पहली बार वन नीति 1952 में बनी थी।
- जबलपुर जिलो को आम जिला एवं पन्ना को ऑवला जिला घोषित किया गया है।
- सर्वाधिक वन क्षेत्र वाला जिला बालाघाट है जो 4978 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र है।
- वनीकरण के लिए 1976 में पंचवन योजना शुरू की गई थी।
- बालघाट एवं श्योपुर के आधे से भी अधिक भूमि पर वन हैं।
- मध्यप्रदेश ईको पर्यटन विकास बोर्ड का गठन म.प्र. शासन ने 12 जुलाई 2005 को किया है।
- म.प्र. में तीन जैवमंडल रिजर्व पंचमढ़ी, अमरकंटक, एवं पन्ना हैं।
- म.प्र. में प्रदूषण नियंत्रक के लिए पर्यावरण नियोजन एवं समन्वय संगठन एप्कों की स्थापना 5 जून 1981 को की गई है।
- आपदा प्रबंधन संस्था की भोपाल में 19 नवंबर 1987 को स्थापना की गई।
- म.प्र. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड भोपाल में है।
- म.प्र. झील संरक्षण प्राधिकरण की स्थापना 2004 में की गई है।
जलवायु के आधार पर वन तीन प्रकार के होते हैं –
- उष्ण कटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन- 25 से 75 सेमी वर्षा
- उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन- 50 से 100 सेमी वर्षा
- उष्ण कटिबंधीय अर्ध पर्णपाती वन- 100 से 150 सेमी वर्षा
मध्य प्रदेश राज्य के प्रमुख वन संस्थान :-
- भारतीय वन प्रबंध संस्थान- भोपाल
- भारतीय वन अनुसंधान संस्थान- जबलपुर
- वन राजिक महाविद्यालय- बालाघाट
- वन प्रबंधन शिक्षा केन्द्र- बैतूल
- संजीवनी संस्थान- भोपाल
- फारेस्ट गार्ड रेंजिक स्कूल- बैतूल, शिवपुरी, अमरकंटक, रीवा, लखनादौन
- प्रादेशिक वन स्कूल- बैतूल, शिवपुरी, अमरकंटक, गोविंदपुर, झाबुआ
भारतीय वन रिपोर्ट – 2021
भारतीय वन सर्वेक्षण संस्थान देहरादून द्वारा प्रत्येक 2 वर्ष पर तैयार की जाती है। यह रिपोर्ट वर्ष 1987 से प्रकाशित की जा रही है। भारत वन स्थिति रिपोर्ट 2019 इस श्रंखला की 16 वीं तथा भारत वन स्थिति रिपोर्ट 2021 इस श्रंखला की 17 वीं रिपोर्ट है। यह रिपोर्ट रिसोर्ससैट-2 उपग्रह के संवेदी आंकड़ों पर आधारित है।
वन रिपोर्ट के आधार पर वनों को मुख्यत: तीन भागों में बांटा जाता है।
- सघन वन -: ऐसे वन जहां वृक्षों का घनत्व 70 प्रतिशत से अधिक होता है। सघन वन कहलाते हैं।
- घने वन -: ऐसे वन जहां वृक्षों का घनत्व 40 से 70 प्रतिशत होता है। घने वन कहलाते हैं।
- खुले वन -: ऐसे वन जहां वृक्षों का घनत्व 10 से 40 प्रतिशत होता है। खुले वन कहलाते हैं।
इसके अलावा ऐसे वन क्षेत्र जहां वृक्षों का घनत्व 10 प्रतिशत से भी कम होता है। झाड़ी क्षेत्र कहलाते हैं। तथा ऐसे क्षेत्र जो वन क्षेत्र के किसी भी वर्गीकरण में शामिल नहीं होते हैं। उन्हें गैर – वन क्षेत्र कहा जाता है।
वन रिपोर्ट 2021 के अनुसार भारत का सबसे बड़ा वन क्षेत्र वाला राज्य मध्य प्रदेश है। जिसका क्षेत्रफल 77,493 वर्ग किलोमीटर है।
मध्य प्रदेश में कुल वन क्षेत्रफल ( total mp forest area ) में पिछली रिपोर्ट की तुलना में 11 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र की वृद्धि हुई है। वन स्थिति रिपोर्ट 2019 के अनुसार मध्य प्रदेश का वन क्षेत्र 77,482 वर्ग किमी था जो कि वन रिपोर्ट 2021 के अनुसार 77,493 वर्ग किमी है।
वन रिपोर्ट 2021 के अनुसार मध्य प्रदेश के वनों की जिलेवार स्थिति -:
सर्वाधिक वन क्षेत्र वाले मध्य प्रदेश के जिले -:
- बालाघाट -: 4923 वर्ग किमी
- छिंदवाड़ा-: 4608 वर्ग किमी
- बैतूल -: 3663 वर्ग किमी
- श्योपुर -: 3444 वर्ग किमी
- सिवनी -: 3063 वर्ग किमी
न्यूनतम वन क्षेत्र वाले मध्य प्रदेश के जिले -:
- उज्जैन -: 37 वर्ग किमी
- शाजापुर ( अविभाजित ) -: 62 वर्ग किमी
- रतलाम -: 75 वर्ग किमी
- राजगढ़ -: 171 वर्ग किमी
- दतिया -: 213 वर्ग किमी
सर्वाधिक वन प्रतिशत वाले मध्य प्रदेश के जिले -:
- बालाघाट -: 53 %
- श्योपुर -: 52 %
- उमरिया -: 49 %
- मंडला -: 44 %
- सीधी -: 41 %
न्यूनतम वन प्रतिशत वाले मध्य प्रदेश के जिले -:
- उज्जैन -: 0.60 %
- शाजापुर -: 1 %
- रतलाम -: 1.55 %
- राजगढ़ -: 2.79 %
- मंदसौर -: 4.35 %
वन क्षेत्रों का वैज्ञानिक प्रबंधन और वन संसाधन का संरक्षण व संवर्धन क्षेत्रीय स्तर पर गठित प्रशासनिक इकाईयों के माध्यम से किया जाता है ।
क्षेत्रीय इकाईयों का विवरण :-
वृत्त – 16
वनमंडल – 63
उपवनमंडल – 135
परिक्षेत्र – 473
उप वन परिक्षेत्र – 1871
परिसर – 8286
वनोपज :-
सागौन (सागवान) :-
- इसका बॉटनीकल नाम टेक्टोनेग्रेण्डाई है।
- यह उष्ण कटिबन्धीय अर्द्ध पर्णपाती वनों के प्रमुख वृक्ष हैं। यह राज्य के सर्वाधिक क्षेत्र में पाए जाते हैं।
- राज्य में सागौन के वृक्ष 18,332.67 वर्ग किमी क्षेत्रफल पर फैले हुए हैं।
- यह वन 75 से 125 सेमी वर्षा वाले तथा काली मृदा के क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
- इनकी लकड़ी इमारती होती है, जो घरों एव लकड़ी के सामान बनाने के काम आती है।
- होशंगाबाद की बोरी घाटी जबलपुर, बैतूल आदि क्षेत्रों में यह वृक्ष अत्यधिक पाए जाते हैं।
साल (सुखिया ):-
- यह उष्णकटिबन्धीय अर्द्ध पर्णपाती वन के वृक्ष हैं। इसका बॉटनीकल नाम शोरीया रोबुस्ता है।
- राज्य के कुल वन क्षेत्रफल के 4.15% क्षेत्र में साल के वन पाए जाते हैं।
- साल की लकड़ी का प्रयोग रेलवे स्लीपर एवं इमारती लकड़ी के रूप में होता है।
- साल राज्य के लाल एवं पीली मिट्टी वाले तथा 125 सेमी वर्षा वाले पूर्वी क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
- शहडोल, बालाघाट, उमरिया एवं मण्डला जिले में साल वृक्ष अधिक पाए जाते हैं, परन्तु साल के वृक्ष बोर नामक कीड़े से क्षतिग्रस्त हो रहे हैं।
बाँस :-
- राज्य में बाँस दक्षिणी एवं पूर्वी जिलों शहडोल, अनूपपुर, बालाघाट, बैतूल, जबलपुर, सिवनी, मण्डला, खण्डवा एवं होशंगाबाद में पाया जाता है।
- इसका बॉटनीकल नाम डेण्डोकेलेमस है। यह 75-125 सेमी वर्षा वाले क्षेत्र में पाए जाते हैं।
- बाँस का प्रयोग अमलाई एवं नेपानगर के कागज कारखानों में तथा भवन निर्माण के लिए किया जाता है। बालाघाट एवं होशंगाबाद वन वृत्त बाँस के प्रमुख उत्पादक क्षेत्र हैं।
- बाँस उत्पादन में मध्य प्रदेश का स्थान देश में अरुणाचल प्रदेश के बाद दूसरा है।
खैर :-
- राज्य में शिवपुरी तथा बानमौर में कत्था बनाने के कारखाने हैं, जिन्हें खैर की लकड़ी श्योपुर, शिवपुरी, गुना तथा मुरैना के वनों से मिलती है।
- खैर राज्य के जबलपुर, सागर, दमोह, उमरिया इत्यादि जिलों में भी पाया जाता है।
- इसका प्रयोग पेण्ट, चर्मशोधन औषधि आदि में होता है।
लाख :-
- राज्य में पलास, कुसुम, बेर के वृक्षों तथा अरहर के पौधे से लाख प्राप्त होती है। उमरिया में लाख बनाने का कारखाना है।
- राज्य में लाख मण्डला, जबलपुर, सिवनी, शहडोल तथा होशंगाबाद के वनों में पाया जाता है।
- इसका प्रयोग औषधि, चर्म शोधन, रसायन एवं सौन्दर्य प्रसाधन के रूप में किया जाता है।
हर्रा :-
- हर्रा मुख्यतः छिन्दवाड़ा, बालाघाट, मण्डला, श्योपुर एवं शहडोल के वनों से प्राप्त होता है।
- हर्रा वृक्ष के फलों में 35 से 40 प्रतिशत के तक ट्रैनिंग पाई जाती है।
- इसका प्रयोग चर्म शोधन, स्याही, पेन्ट तथा औषधि के रूप में किया जाता है।
तेन्दूपत्ता :-
- मध्य प्रदेश तेन्दूपत्ता का सबसे बड़ा संग्राहक है।
- यह मुख्यतः सागर, जबलपुर, शहडोल एवं सीधी जिलों में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।
- तेन्दूपत्ता का प्रयोग मुख्यतः बीड़ी बनाने में होता है।
गोंद :-
- . गोंद का उत्पादन ग्वालियर, खण्डवा, मुरैना, शिवपुरी तथा रतलाम आदि जिलों में किया जाता है।
- यह बबूल, कूल्लू एवं सलाई इत्यादि वृक्षों से प्राप्त होता है।
- गोंद का प्रयोग तीन रूपों में होता है, जिसमें बबूल का प्रयोग खाने में, कुल्लू का प्रयोग कॉफी एवं पेस्टी बनाने में तथा सलाई गोंद का प्रयोग पेण्ट तथा वार्निश बनाने में किया जाता है।
- इसके अतिरिक्त गोंद का प्रयोग पेपर प्रिण्टिंग, दवा उद्योग आदि में किया जाता है।
भिलावा :-
- भिलावा एक फल का नाम है। भिलावा मुख्य रूप से छिन्दवाड़ा वन वृत्त से एकत्रित किया जाता है।
- इसका प्रयोग स्याही एवं पेण्ट बनाने में किया जाता है।
- छिन्दवाड़ा जिले में भिलावा से स्याही बनाने का कारखाना है।
मध्य प्रदेश के औषधीय पौधे :-
मध्य प्रदेश के प्रमुख औषधीय पौधे काली हल्दी (करकूमा केशिया), मुल्हटी (ग्लेशिरहिजा गलेब्रा), जंगली हल्दी (करकूमा एरोमैटिका), काली मूसली (करकुलिगो आर्कियोडीज़), अश्वगन्धा (विथेनिआ सोमनिफेरा), सर्पगन्धा (राउवोल्फिआ सर्पेन्टिना), सफेद मूसली (क्लरोफायटम टयूबरोसम), नागरमोठा (साइप्रस स्कारिओसस) आदि है।