Tribes of Madhya Pradesh

tribes of Madhya Pradesh

मध्यप्रदेश की प्रमुख जनजातियाँ

Tribes of Madhya Pradesh 2011 की जनगणना के अनुसार जनजातियों का प्रतिशत मध्यप्रदेश में 21.1% है। लगभग 24 जनजातियां यहां निवास करती हैं। इनकी उपजातियों को मिलाकर इनकी कुल संख्या 90 है। मध्यप्रदेश में लगभग 1.53 करोड़ जनसंख्या इन जनजातियों की है, जो अब भी भारत में सर्वाधिक है ।Tribes of Madhya Pradesh

Table of Contents

    भील Tribes of Madhya Pradesh :-

    मध्य प्रदेश की सबसे बड़ी जनजाति भील है। जनसंख्या की दृष्टि से भारत की तीसरी सबसे बड़ी जनजाति है । भील का अर्थ है कमान। ये धनुष रखते हैं इसलिए भील कहलाते हैं। यह जनजाति मध्यप्रदेश के पश्चिमी क्षेत्र धार ,झाबुआ और पश्चिमी निमाड़ जिलों में निवास करती है । यह मध्य प्रदेश का सबसे बड़ा जनजाति परिक्षेत्र है। यह मध्य प्रदेश के अतिरिक्त राजस्थान ,महाराष्ट्र एवं गुजरात में भी पाई जाती है। पिथौरा, भीलों का ए​क विश्व प्रसिद्ध चित्रकला शैली है। Tribes of Madhya Pradesh

    उत्पत्ति :-

        भील शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा के शब्द भिल्ल से मानी जाती है। वहीं यह भी कहा जाता है कि इस शब्द की उत्पत्ति द्रविड़ भाषा के शब्द बील से हुई है ,जिसका अर्थ होता है धनुष चूंकि ये जनजाति धनुर्विद्या में निपुण होती है इसलिए भील गया है।

    शारीरिक बनावट :-

        भील प्रोटो आस्ट्रेलॉयड प्रजाति के अंतर्गत आते हैं। भील जनजाति के लोग का कद छोटा होता है । सामान्यतया इनकी ऊंचाई 4.5 फीट होती है। शरीर का रंग काला ,गहरे काले घुंघराले बाल ,चपटी नाक, चौड़ा मुह ,बड़े नथुने, गठा बदन आदि इस जनजाति की प्रमुख शारीरिक विशेषताएं हैं। Tribes of Madhya Pradesh

    निवास :-

        भीलो का निवासी स्थाई नहीं होता है। यह प्रायः भ्रमण करते रहते हैं । यह लोग पहाड़ी स्थान पर बांस ,मिट्टी ,खपरैल तथा पत्थरों से झोपड़ी बनाकर रहते हैं । इनके घर आकार में बड़े और खुले खुले होते हैं । यह अपने निवास स्थल को “फाल्या और कु” कहते हैं। Tribes of Madhya Pradesh

    वेशभूषा :-

        भीलों में काफी कम कपड़े पहने जाते हैं । प्रायः पुरुष लंगोटी तथा सिर पर साफा बांधते हैं। जबकि स्त्रियां अंगरखा नामक वस्त्र पहनती हैं। स्त्री तथा पुरुष दोनों ही को आभूषण प्रिय होते हैं । स्त्रियों में लाल रंग का लहंगा तथा ओढ़नी का प्रचलन अत्यधिक है । यह शरीर पर गोदना गुदवाती हैं । तथा पैरों में गिलट, लोहे, चांदी या चांदी मिश्र धातु के आभूषण धारण करती हैं। पुरुष कानों में चांदी की बालियां ,लटकन हाथ में कड़े, सिर पर चाकदार पगड़ी तथा हाथ और पांव में लोहे या गिलट के कड़े पहनते हैं । भीलों के बाल काफी लंबे होते हैं तथा यह इन्हें विभिन्न प्रकारों से सजाते हैं। Tribes of Madhya Pradesh

    भोजन :-

        भील जनजाति का प्रिय खाद्य पदार्थ रबड़ी है। इसके अतिरिक्त मक्का,ज्वार, लावा, कुरा, उड़द की उबली दाल भी इनमें प्रचलित है। इसके अलावा ये मांसाहारी होते हैं तथा इन्हें मदिरापान से विशेष लगाव होता है। ग्रीष्म ऋतु में ताड़ी नामक मद्य पेय पदार्थ का सेवन करते हैं । इसके अलावा मकई ,जौ, महुआ आदि की कच्ची शराब बनाकर यह स्वयं भी पीते हैं तथा देवी देवताओं को भी प्रसाद के रूप में चढ़ाते हैं। Tribes of Madhya Pradesh

    उपजातियाँ : – बरेला , भिलाला, पटलिया

    गोण्ड Tribes of Madhya Pradesh :-

     यह जनसंख्या की दृष्टि से भारत की सबसे बड़ी तथा मध्य प्रदेश की दूसरी सबसे बड़ी जनजाति है। गोण्ड की उत्पत्ति तेलुगु के ‘कोंड’ शब्द से हुई है जिसका अर्थ पर्वत है अर्थात यह जनजाति पर्वतों पर निवास करती है। यह जनजाति मध्य प्रदेश के सभी जिलों में फैली हुई है लेकिन नर्मदा के दोनों और विंध्य और सतपुड़ा के पहाड़ी क्षेत्रों में इसका अधिक घनत्व है राज्य के बैतूल, छिंदवाड़ा, होशंगाबाद बालाघाट, मंडला,शहडोल जिलों में गोंड जनजाति पाई जाती है। इनके बिदरी, बकपंथी, हरडिली, नवाखानी, जवारा मडई और छेरता प्रमुख पर्व, त्यौहार हैं। हिन्दू देवताओं के साथ ये ठाकुर देव, माता बाई, दूल्हादेव, बाधेश्वर, सूरजदेव, खैरमाता की पूजा करते हैं। करमा, सैला, भडौनी, सुआ, दीवानी, बिरहा, कहरवा आदि इनके प्रमुख नृत्य हैं। Tribes of Madhya Pradesh

    शारीरिक बनावट :-

        इस जनजाति में स्त्रियों का कद पुरुषों की अपेक्षाकृत छोटा होता है। इनकी त्वचा का रंग काला, बाल काले तथा गोलाकार सिर ,छोटे ओंठ, सुगठित शरीर तथा मुंह चौड़ा होता है। इनके चेहरे पर बाल कम आते हैं पुरुष दाढ़ी मूछ नहीं रखते ।स्त्री और पुरुष दोनों शरीर सुगठित होता है यह अत्यधिक परिश्रमी होते हैं। Tribes of Madhya Pradesh

    उपसमूह :-

        मध्य प्रदेश गोंड जनजाति व्यवसाय के आधार पर कई उप जातियों में विभाजित है जैसे लोहे का काम करने वाला समूह  अगरिया ,मंदिर में पूजा पाठ करने वाले प्रधान तथा पंडिताई या तांत्रिक क्रिया करने वाले ओझा कहे जाते हैं। Tribes of Madhya Pradesh

     विवाह : –

      मध्य प्रदेश की गोंड जनजाति में भाई का लड़का और बहन की लड़की अथवा भाई की लड़की और बहन का लड़का में विवाह का प्रचलन है जिसे यह लोग दूध लौटावा कहते हैं।

        गोंड जनजाति में वर द्वारा वधू मूल्य नहीं चुकाने की स्थिति में वह भावी ससुर के यहां सेवा करता है ,जिससे खुश होकर उसे कन्या दे दी जाती है । इस सेवा विवाह कहा जाता है तथा वह व्यक्ति लामानाईं कहलाता है। Tribes of Madhya Pradesh

    उपजातीयां :- परधान, अगरिया,ओझा ,नगारची, सोलहास।

    बैगा Tribes of Madhya Pradesh :-  

    मध्यप्रदेश के दक्षिण क्षेत्र मंडला, बालाघाट ,शहडोल तथा सीधी जिलों में निवास करने वाली बैगा सर्वाधिक महत्वपूर्ण जनजाति है। यह गोंडों की ही उपजाति मानी जाती है। इनमें बासी भोजन की परम्परा है। ‘साल’ इनका प्रिय वृक्ष है जिसमे इनके देवता बुढ़ादेव निवास करते हैं। Tribes of Madhya Pradesh

    शारीरिक विशेषताएं

        बैगाओं का रंग काला व त्वचा शुष्क और रूखी होती है। इन के बाल लंबे होते हैं ,जिन्हें यह चोटी की तरह बांधते हैं। इनका कद अन्य जातियों की अपेक्षा कुछ लंबा तथा नाक चपटी होती है। Tribes of Madhya Pradesh

    निवास स्थान :-

    बैगा जनजाति  के घर की दीवारें मिट्टी की बनाई जाती हैं तथा छत पर घास-फूस बिछाया जाता है ।

    वैशभूषा :-

        बैगा बहुत कम वस्त्र धारण करते हैं। पुरुष कमर के ऊपरी भाग में कमीज तथा निचले भाग में लंगोटी पहनते हैं । विशेष अवसरों पर इन्हें जैकेट तथा साफा पहले भी देखा जाता है । पुरुष हाथ में कड़े पहनते हैं, जबकि स्त्रियों में आभूषण के प्रति अत्यधिक आकर्षण होता है । वस्त्र विन्यास में महिला शरीर पर केवल एक साड़ी धारण करती हैं। महिलाएं धोती भी पहनती हैं तथा उसी में अपने बच्चों को बांध लेती हैं। Tribes of Madhya Pradesh

    उपजातियाँ : – बिंझवार, नरोतिया, भरोतिया, नाहर मैना कठ मैना

    सहरिया :-

    यह प्रदेश के उत्तर पश्चिम क्षेत्र विशेषकर गुना, ग्वालियर, शिवपुरी, भिंड ,मुरैना, विदिशा, रायसेन, और बुंदेलखंड में निवास करती है। सहरिया  जनजाति का घनत्व ग्वालियर संभाग में सर्वाधिक है। इनकी बसाहट को सहराना कहा जाता है, जिसका मुखिया ‘पटेल’ होता है। सहरिया जड़ी-बूटियों की पहचान में माहिर होते हैं। यह केंद्र सरकार द्वारा घोषित विशेष पिछड़ी जनजाति है। Tribes of Madhya Pradesh

    उत्पत्ति :-

        सहरिया कोलेरियन  परिवार की संपूर्ण पहचान रखने वाली जनजाति है। फारसी भाषा में सहर का अर्थ जंगल होता है। क्योंकि यह लोग जंगलों में निवास करते हैं अतः इन्हें सहरिया कहा जाता है । एक अन्य प्रचलित धारणा के अनुसार सहरिया शब्द की उत्पत्ति सह+हरिया से हुई है ,जिसका अर्थ है शेर के साथ होना। Tribes of Madhya Pradesh

    शारीरिक विशेषताएं :-

        सहरिया जनजाति के लोगों का कद सामान्य ऊंचा तथा रंग काला होता है। इनके पहनावे पर राजस्थानी वेशभूषा का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। सहरिया पुरुष धोती  रंगीन कमीज और साफा पहनते हैं , स्त्रियां लहंगा घाघरा,लुगडा पहनती है । स्त्री और पुरुष दोनों ही आभूषण प्रिय होते हैं। स्त्रियां अपने शरीर पर गोदना करवाती हैं ।

    कोरकु :-  

    मध्यप्रदेश में कोरकु जनजाति सतपुड़ा के वन क्षेत्रों मुख्यतः छिंदवाड़ा ,बैतूल जिले की भैंस देही और चिचोली तहसील तथा हरदा टिमरनी और खिरकिया तहसील और खंडवा की हरसूद, बुरहानपुर जिले के ग्रामों में निवास करने वाले एक प्रमुख जनजाति है । Tribes of Madhya Pradesh

    मध्य प्रदेश के अलावा महाराष्ट्र के अकोला, मेलघाट तथा गोशिता  में भी अभी कोरकू जनजाति निवास करती है।

    शारीरिक विशेषताएं :-

        कोरकु जनजाति के लोगो का रंग काला, आंखें काली, नाक कुछ चपटी, ओंठ मोटे तथा चेहरा गोल होता है । इनका शरीर बहुत हष्ट -पुष्ट होता है । इन के गालो की हड्डियां ऊपर उठी होती है, नाक चौड़ी होती हुए भी यह नीग्रो लोगों की तरह नहीं दिखाई देते हैं।

    वैशभूषा :-

        कोरकु  जनजाति के लोगो का पहनावा बहुत ही साधारण है। पुरुष शरीर के ऊपरी भाग पर सूती बण्डी और कुर्ता तथा कमर में घुटनों तक सफेद धोती पहनते हैं । सिर पर चार-पांच हाथ का अंगोछा या पगड़ी बांधते हैं । Tribes of Madhya Pradesh

        ये गले में चांदी या कांसे अथवा तांबे का छोटा ताबीज भी पहनते हैं । बच्चे प्राय नग्न अवस्था में ही रहते हैं। कोरकू स्त्रियां रंग-बिरंगे, नीले हरे लाल और गुलाबी रंग के  लुगड़े  पहनना ज्यादा पसंद करती हैं । यह बदन ढकने के लिए रंग बिरंगी धोतीयां भी  पहनती हैं । और लाल, पीले ,हरे , काले, रंग के मोतियों से बनी मूंगा की माला पहनती हैं।

    बंजारा :-

    भारत की घुमंतू जनजाति ‘बंजारा’ पर कबीलाई पद्यति का प्रभाव आज भी है । कबीले का एक मुखिया होता है जिसे नायक कहते हैं। मध्यप्रदेश में बंजारा एक घुमंतू जनजाति के रूप में जानी जाती है ।लेकिन प्रदेश के क्षेत्रों में विशेषकर निमाड़, मालवा, मंडला आदि में बंजारा जनजाति के लोग ग्राम व बसाकर रहते हैं जिससे टांडा कहा जाता है। बंजारा स्त्रियों को श्रृंगार करना बहुत पसंद हैं।

    बंजारे सिख धर्म से प्रभावित है ।गुरु नानक देव और गुरु ग्रंथ साहिब पर बंजारे अटूट आस्था रखते हैं। विवाह के अवसर पर मुखिया उदासी अरदास पढ़ते हैं ।बंजारों में गणगौर पर्व सावन महीने मनाया जाता है ,जबकि अन्य समाजों में चौत्र वैशाख में मनाया जाता है बंजारे मिट्टी की गणगौर मूर्तियां बनाकर पूजा करते। Tribes of Madhya Pradesh

    पनका या पनिका जनजाति :-

        पनिका जनजाति देवगढ़ प्रजाति की जनजाति है छोटा नागपुर में पनिका के नाम से जानी जाती है। इस जनजाति के लोग कबीरपंथी हैं इसलिए इन्हे कबीरहा भी कहते है । इस जनजाति के लोग मध्य प्रदेश के सीधी व शहडोल में पाए जाते हैं।

    भारिया जनजाति  :-

        भारिया जनजाति का विस्तार मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा, सिवनी ,मंडला जिले में है । इस अपेक्षाकृत बड़े भाग में फैली जनजाति का एक छोटा सा समूह छिंदवाड़ा जिले के पातालकोट नामक स्थान में सदियों से रह रहा है। पातालकोट स्थल को देखकर की समझा जा सकता है कि यह वह स्थान है जहां समय रुका हुआ प्रतीत होता है । इस क्षेत्र के निवासी शेष दुनिया से अलग-थलग एक ऐसा जीवन जी रहे हैं ,जिसमें उनकी अपनी मान्यताएं, संस्कृति और अर्थव्यवस्था है । जिसमें बाहर के लोग कभी कभार पहुंचते रहते हैं किंतु इन्हें यहां के निवासियों से कुछ खास लेना-देना नहीं है। Tribes of Madhya Pradesh

        पातालकोट का अर्थ है पाताल को घेरने वाला किला। यह नाम बाहरी दुनिया के लोगों ने छिंदवाड़ा के इस स्थान को दिया है जिसके चारों और तीव्र ढाल वाली पहाडि़या है। इन वृत्ताकार पहाडि़यों ने मानो सचमुच ही एक दुर्ग का रूप ले लिया है। पातालकोट में 90% आबादी भारिया जनजाति की है से 10% में दूसरे आदिवासी हैं।

    पारधी जनजाति

    यह जनजाति सम्पूर्ण मध्यप्रदेश में पायी जाती  है । पारधी शब्द मराठा शब्द पारध का तद्भव रूप है जिसका अर्थ है आखेट। अनुसूचित जनजातियों की शासकीय  सूची में भी इस जनजाति के अंतर्गत बहेलियों को सम्मिलित किया गया है।

    इस जनजाति की उपजातियां

    भील पारधी  :- पारधी जो पशु पक्षियों का शिकार बंदूक से भी करते हैं भील पारधी कहलाते हैं।

    चीता पारधी :- चीता को पालने वह प्रशिक्षित करने वाले पारधी चीता पारधी  कहलाते हैं। परंतु यह लगभग 100 वर्ष पुरानी बात हो गई है। Tribes of Madhya Pradesh

    गोसाई पारधी :-  यह लोग गेरुआ रंग का वस्त्र धारण करते हैं ।तथा भगवा वस्त्र धारण करते हैं।  साधु जैसे दिखाई देते हैं यह लोग हिरणों का शिकार करते हैं।

    कोल जनजाति

        कोल मध्यप्रदेश में कैमूर श्रेणियों के मूल निवासी हैं । तथा रीवा को अपनी रियासत बताते हैं । यह जनजाति रीवा ,सीधी ,सतना, शहडोल ,कटनी ,जबलपुर में निवास करती है। कोल जनजाति का पूर्व मूल निवास रीवा के बरदीराजा क्षेत्र के कुराली को माना जाता है ।

    मध्य प्रदेश की  प्रमुख बोलियां

    मध्यप्रदेश में सांस्कृतिक एवं सामाजिक विभिन्नता होने के कारण अनेक प्रकार की बोलियां बोली जाती है !

    बुंदेलखंडी :-

    यह शौरसेनी अपभ्रंश से जन्मी पश्चिमी हिंदी की एक प्रमुख बोली है इसका नामकरण जॉर्ज ग्रियर्सन ने किया था प्रदेश में इस बोली का क्षेत्र अन्य बोंलियों की तुलना में अधिक व्यापक है !

    इस बोली का विस्तार महाराष्ट्र के चाँदा,नागपुर, बुलढाना, भंडारा ,अकोला. जिलों में तथा उत्तर प्रदेश के झांसी जालौन ललितपुर आगरा हमीरपुर इटावा बांदा जिला में एवं मध्यप्रदेश के छतरपुर ,टीकमगढ़ .दमोह सागर .पन्ना. जबलपुर नरसिंहपुर. सिवनी. होशंगाबाद जिले में हैं! Tribes of Madhya Pradesh

    निमाड़ी :-

    यह बोली मुख्य रूप से खंडवा. खरगोन ,धार ,बड़वानी .झाबुआ एवं इंदौर जिलों में बोली जाती है यह बोली शौरसेनी अपभ्रंश से विकसित हुई है डॉक्टर ग्रियर्सन ने इसे दक्षिणी राजस्थानी कहा है।

    बघेलखंडी :-

    बघेली अर्धमागधी अपभ्रंश से जन्मी पूर्वी हिंदी की एक महत्वपूर्ण बोली है प्रदेश में विशुद्ध बघेली रीवा शहडोल सतना और सीधी जिले में देखने को मिलती है इस होली में लोकगीतों एवं लोक कथाओं के रूप में फुटकर साहित्य रचा गया है Tribes of Madhya Pradesh

    मालवी :-

    मालवी हिंदी वर्ग की बोली है मालवा क्षेत्र में बोली जाने के कारण ऐसे मालवी कहा गया है यह मुख्य रूप से सिहोर,नीमच,रतलाम,मंदसौर,शाजापुर,झाबुआ,उज्जैन,देवास एवं इंदौर जिले में बोली जाती है!

    ब्रजभाषा :-

    ब्रजभाषा खड़ी हिंदी की एक बोली है जो मुख्य रूप से भिंड मुरैना ग्वालियर में बोली जाती है इस बोली में सूरदास मीरा रसखान जैसे कवियों ने बड़े पैमाने पर साहित्य का सृजन किया है

    कोरकू :-

    यह गोली बेतूल होशंगाबाद छिंदवाड़ा खरगोन जिलो  में आदिवासियों द्वारा बोली जाती है इस बोली में लोकगीतों एवं लोककथाओं के रूप में साहित्य की रचना की गयी है । Tribes of Madhya Pradesh

    भीली :-

    यह बोली प्रदेश के रतलाम, धार ,झाबुआ ,खरगोन एवं अलीराजपुर जिले में रहने वाली भील जनजाति के द्वारा बोली जाती है

    गोंडी :-

    गोंडी बोली प्रदेश में छिंदवाड़ा ,सिवनी ,बालाघाट, मंडला, डिंडोरी एवं होशंगाबाद जिले में रहने वाली गोंड जनजाति के द्वारा बोली जाती है Tribes of Madhya Pradesh

    Major tribes of Madhya Pradesh

    According to the 2011 census, the percentage of tribes in Madhya Pradesh is 21.1%. About 24 tribes reside here. Including their sub-castes, their total number is 90. Madhya Pradesh has about 1.53 crore population of these tribes, which is still the highest in India.

    Bhil :-

    Bhil is the largest tribe of Madhya Pradesh. It is the Second largest tribe in India in terms of population. Bhil means command. They keep bow, that’s why they are called Bhil. This tribe resides in the western region of Madhya Pradesh in Dhar, Jhabua and West Nimar districts. This is the largest tribal enclave in Madhya Pradesh. Apart from Madhya Pradesh, it is also found in Rajasthan, Maharashtra and Gujarat. Pithora is a world famous painting style of Bhils. Tribes of Madhya Pradesh

    Origin :-

        The origin of the word Bhil is believed to be from the Sanskrit word Bhilla. At the same time, it is also said that the origin of this word is from Dravidian language word Beel, which means bow.

    Body  structure: –

        Bhils come under Proto Australoid. The height of the people of Bhil tribe is small. Generally their height is 4.5 feet. Black body color, dark black curly hair, flat nose, wide mouth, big nostrils, thick body etc. are the main physical features of this tribe. Tribes of Madhya Pradesh

    Residence :-

        The resident of Bhils is not permanent. They often keep on traveling. These people live in hilly places by making huts made of bamboo, mud, tiles and stones. Their houses are big in size and open. They call their place of residence “Falya and Ku”.

    Uniform :-

        Very few clothes are worn in Bhils. Usually men tie a loincloth and a turban on their head. While women wear a garment called Angarkha. . Red colored lehenga and odhani are very popular among women. They get tattooed on the body. And wears gold, iron, silver or silver alloy ornaments on the feet. Men wear silver earrings in their ears, pendants in their hands, turbans made of chalk on their heads and iron or gilt bracelets in their hands and feet. Tribes of Madhya Pradesh

    Meal :-

        Rabdi is the favorite food item of Bhil tribe. Apart from this, boiled lentils of maize, jowar, lava, kura, urad are also prevalent in them. Apart from this, they are non-vegetarian and they have a special attachment to alcohol. In summer, they consume an alcoholic drink called toddy. Apart from this, by making raw liquor of corn, barley, mahua etc., they drink it themselves and also offer it to the gods and goddesses in the form of prasad.

    Subcastes:- Barela, Bhilala, Pataliya

    Gond: –

     It is the largest tribe of India and second largest tribe of Madhya Pradesh in terms of population. The origin of Gond is from the Telugu word ‘Konda’ which means mountain, that is, this tribe resides on the mountains. This tribe is spread in all the districts of Madhya Pradesh but it has more density in both Narmada and Vindhya and Satpura hilly areas. Gond tribe is found in Betul, Chhindwara, Hoshangabad Balaghat, Mandla, Shahdol districts of the state. Their major festivals are Bidri, Bakpanthi, Hardili, Nawakhani, Jawara Madai and Chherta. Along with Hindu deities, they worship Thakur Dev, Mata Bai, Dulhadev, Badheshwar, Surajdev, Khairmata. Karma, Saila, Bhadauni, Sua, Diwani, Birha, Kaharwa etc. are their main dances.

    Body  structure: –

        The height of women in this tribe is smaller than that of men. Their skin color is black, hair black and round head, small lips, compact body and wide mouth. There is less hair on their face, men do not keep beard and moustache. Both male and female body is well formed, they are very hard working.

    Subgroup :-

        The Madhya Pradesh Gond tribe is divided into several sub-castes on the basis of occupation, such as the Agariya group of iron workers, Pradhans of temple worship and Panditai or Tantrik rites called Ojha.

    Marriage :

      In the Gond tribe of Madhya Pradesh, there is a practice of marriage between brother’s son and sister’s daughter or brother’s daughter and sister’s son, which is called return of milk.

        In the Gond tribe, in case the bridegroom does not pay the bride price, he serves at the future father-in-law’s place, being happy, the girl is given to him. This service is called marriage and the person is called a Lamanai.

    Subcastes :- Pardhan, Agariya, Ojha, Nagarchi, Solhas.

    Baiga :-

    Baiga is the most important tribe living in Mandla, Balaghat, Shahdol and Sidhi districts of southern region of Madhya Pradesh. It is considered a sub-caste of Gonds only. They have a tradition of stale food. ‘Saal’ is their favorite tree in which their deity Budhadev resides.

    Body Structure :-

        The color of the Baigas is black and the skin is dry and rough. They have long hair, which they tie like a braid. Their height is slightly longer than other castes and their nose is flat.

    Residence :-

    The walls of the house of the Baiga tribe are made of mud and the roof is covered with grass.

    Dress: –

        Baigas wear very few clothes. Men wear shirt in the upper part of the waist and loincloth in the lower part. On special occasions, they are also seen wearing jackets and turbans. Men wear bracelets on their hands, while women have a lot of attraction towards jewellery. In clothing, women wear only one saree on the body. Women also wear dhoti and tie their children in it.

    Subcastes :- Binjhwar, Narotiya, Bharotiya, Nahar Maina, Kath Maina

    Sahariya :-

    It resides in the north-west region of the state, especially in Guna, Gwalior, Shivpuri, Bhind, Morena, Vidisha, Raisen, and Bundelkhand. The density of Saharia tribe is highest in Gwalior division. Their settlement is called Saharana, whose head is ‘Patel’. Sahariya specializes in the identification of herbs. It is a Special Backward Tribe declared by the Central Government.

    Origin  :-

        Sahariya is a tribe having complete identity of Kolerian family. Sahar means forest in Persian language. Because these people live in the forests, they are called Sahariya. According to another popular belief, the word Sahariya is derived from Saha + Hariya, which means to be with a lion.

    Body Structure :-

        The height of the people of Saharia tribe is generally high and the complexion is black. The influence of Rajasthani costumes can be clearly seen on their dress. Sahariya men wear dhoti, colorful shirt and safa, women wear lehenga, ghagra, lugda. Women get tattoos done on their bodies.

    Korku :-

    In Madhya Pradesh, Korku tribe is a major tribe living in the forest areas of Satpura, mainly Chhindwara, Bhains Dehi and Chicholi tehsils of Betul district and Harda Timarni and Khirkiya tehsils and Harsud villages of Khandwa, Burhanpur district.

    Apart from Madhya Pradesh, the Korku tribe still lives in Akola, Melghat and Goshita in Maharashtra.

    physical attributes :-

        The color of the people of Korku tribe is black, eyes are black, nose is somewhat flat, lips are thick and face is round. Their body is very vigorous. Their cheek bones are upturned, their nose is broad but they do not look like the negroes.

    Dress: –

        The dress of the people of Korku tribe is very simple. Men wear cotton bandi and kurta on the upper part of the body and white dhoti till the knees in the waist. A four-five hand scarf or turban is tied on the head.

    They also wear a small talisman of silver or bronze or copper around their neck. Children usually remain naked. Korku women prefer to wear colorful, blue, green, red and pink colored clothes. She also wears colorful dhotis to cover her body. And wears coral beads made of red, yellow, green, black colored beads.

    Banjara :-

    The effect of tribal system on the nomadic tribe of India ‘Banjara’ is still there today. There is a head of the clan called Nayak. In Madhya Pradesh, Banjara is known as a nomadic tribe. But in the areas of the state, especially in Nimad, Malwa, Mandla etc., the people of Banjara tribe live in villages and settlements, which are called Tandas. Banjara women love to make up.

    Banjare is influenced by Sikhism. Banjare has unwavering faith in Nanak Dev and Granth Sahib. On the occasion of marriage, the chief recites Udasi Ardaas. Gangaur festival is celebrated in the month of Sawan in Banjaras, whereas in other societies it is celebrated in Chautra Vaishakh.

    Panka or Panika tribe: –

        Panika tribe is a tribe of Deogarh species known as Panika in Chhota Nagpur. The people of this tribe are Kabirpanthi, hence they are also called Kabirha. People of this tribe are found in Sidhi and Shahdol of Madhya Pradesh.

    Bharia tribe :-

        Bharia tribe is spread in Chhindwara, Seoni, Mandla district of Madhya Pradesh. A small group of tribes spread over this relatively large area have been living in a place called Patalkot in Chhindwara district for centuries. Looking at Patalkot site, it can be understood that this is the place where time seems to have stopped. The inhabitants of this region lead a life isolated from the rest of the world, with their own beliefs, culture and economy. In which people from outside keep reaching occasionally but they have nothing much to do with the residents here.

        Patalkot means the fort that surrounds Patal. The people of the outside world have given this name to this place of Chhindwara which is surrounded by steep hills. As if these circular hills have really taken the form of a fort. In Patalkot, 90% of the population is of Bharia tribe while 10% are of other tribes.

    Pardhi tribe :-

    Pardhi tribe is found in entire Madhya Pradesh. The word Pardhi is a derived form of the Maratha word Pardha which means to hunt. Fowlers have also been included in the official list of Scheduled Tribes under the Pardhi tribe.

    sub-castes of Pardhi tribe :-

    Bhil Pardhi :- Pardhis who hunt animals and birds with guns are also called Bhil Pardhis.

    Cheetah Pardhi:- The pardhis who rear and train cheetahs are called Cheetah Pardhis. But it has become almost 100 years old.

    Gosai Pardhi :- These people wear saffron colored clothes and wear saffron clothes. These people look like sages, they hunt deer.

    Kol tribe –

        Kol is the native of Kaimur ranges in Madhya Pradesh. And they call Rewa their princely state. This tribe resides in Rewa, Sidhi, Satna, Shahdol, Katni, Jabalpur. The former original abode of Kol tribe is considered to be Kurali of Bardiraja area of ​​Rewa.

    Major Dialects of Madhya Pradesh :-

    Due to cultural and social diversity in Madhya Pradesh, many types of dialects are spoken.

    Bundelkhandi :-

    Bundelkhandi is a major dialect of Western Hindi born from Shorseni Apabhransh. It was named by George Grierson. The area of ​​this dialect in the state is more extensive than other dialects.

    Extension of Bundelkhandi dialect Chanda, Nagpur, Buldhana, Bhandara, Akola of Maharashtra. In the districts and Jhansi, Jalaun, Lalitpur, Agra, Hamirpur, Etawah, Banda district of Uttar Pradesh and Chhatarpur, Tikamgarh, Damoh, Sagar, Panna of Madhya Pradesh. Jabalpur Narsinghpur. suture. Hoshangabad is in the district.

    Nimari :-

    This dialect is mainly Khandwa. It is spoken in the districts of Khargone, Dhar, Barwani, Jhabua and Indore. This dialect has developed from Shaurseni Apabhramsa. Dr. Grierson has called it Southern Rajasthani.

    Baghelkhandi :-

    Bagheli is an important dialect of Eastern Hindi born from Ardhamagadhi Apabhramsa. In the state, pure Bagheli is seen in Rewa, Shahdol, Satna and Sidhi districts. In this Holi, literature has been composed in the form of folk songs and folk tales.

    Malvi :-

    Malvi is a dialect of Hindi class, because it is spoken in Malwa region, such Malvi has been called, it is mainly spoken in Sehore, Neemuch, Ratlam, Mandsaur, Shajapur, Jhabua, Ujjain, Dewas and Indore districts!

    Braj Bhasha: –

    Braj Bhasha is a dialect of Khadi Hindi which is mainly spoken in Bhind ,Morena ,Gwalior. Poets like Surdas ,Meera ,Raskhan have created a large amount of literature in this dialect.

    Korku :-

    This Dialect is spoken by tribals in Betul, Hoshangabad, Chhindwara, Khargone districts. Literature has been composed in the form of folk songs and folk tales in this dialect.

    Bheeli :-

    This dialect is spoken by the Bhil tribe living in Ratlam, Dhar, Jhabua, Khargone and Alirajpur districts of the state.

    Gondi: –

    Gondi dialect is spoken by Gond tribes living in Chhindwara, Seoni, Balaghat, Mandla, Dindori and Hoshangabad districts in the state.


    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *