भारत में जल संसाधन (प्राकृतिक संसाधन )
हम भाग्यशाली है कि भारत के पास विशाल जल संसाधन हैं। संसाधनों में विविधता; हिमानियों, धरातलीय नदियों एवं भूमिगत जल, वर्षा एवं महासागरों के रूप भू-आकारों में विविधता का परिणाम है। अनुमानित औसत वार्षिक वर्षा 117 से.मी. है। भारत में नदियाँ धरातलीय जल का प्रमुख स्रोत हैं। सिंधु, गंगा व ब्रह्मपुत्रा कुल धरातलीय जल का लगभग 60 प्रतिशत वहन करती हैं। भारत की पुनर्भरण योग्य भू-जल क्षमता 434 अरब घन मीटर है। आज, 70 प्रतिशत से भी ज्यादा जनसंख्या, अपनी घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भूजल का उपयोग करती है। आधे से भी ज्यादा सिंचाई इस स्त्रोत से प्राप्त होती है।
भारत की नदियाँ :-
नदी भूतल पर प्रवाहित एक जलधारा है जिसका स्रोत प्रायः कोई झील, हिमनद, झरना या बारिश का पानी होता है तथा किसी सागर अथवा झील में गिरती है। नदी शब्द संस्कृत के नद्यः से आया है।
नदी दो प्रकार की होती है. सदानीरा या बरसाती। सदानीरा नदियों का स्रोत झील, झरना अथवा हिमनद होता है और वर्ष भर जलपूर्ण रहती हैं, जबकि बरसाती नदियाँ बरसात के पानी पर निर्भर करती हैं। गंगा, यमुनाए कावेरी, ब्रह्मपुत्र आदि सदानीरा नदियाँ हैं।
भारत की नदियों का देश के आर्थिक एवं सांस्कृतिक विकास में प्राचीनकाल से ही महत्वपूर्ण योगदान रहा है। सिन्धु तथा गंगा नदियों की घाटियों में ही विश्व की सर्वाधिक प्राचीन सभ्यताओं सिन्धु घाटी तथा आर्य सभ्यता का आर्विभाव हुआ। आज भी देश की सर्वाधिक जनसंख्या एवं कृषि का संकेन्द्रण नदी घाटी क्षेत्रों में पाया जाता है। प्राचीन काल में व्यापारिक एवं यातायात की सुविधा के कारण देश के अधिकांश नगर नदियों के किनारे ही विकसित हुए थे तथा आज भी देश के लगभग सभी धार्मिक स्थल किसी न किसी नदी से सम्बद्ध है।
नदियों के देश कहे जाने वाले भारत में मुख्यतः हिमालय से निकलने वाली नदियाँ(सिंधु, गंगा, ब्रह्मपुत्र), प्रायद्वीपीय नदी(नर्मदा, कावेरी, महानदी) प्रणाली है।
हिमालय से निकलने वाली नदियाँ :-
हिमालय से निकलने वाली नदियाँ बर्फ़ और ग्लेशियरों( हिमानी या हिमनद) के पिघलने से बनी हैं अत: इनमें पूरे वर्ष के दौरान निरन्तर प्रवाह बना रहता है। हिमालय की नदियों के बेसिन बहुत बड़े हैं एवं उनके जलग्रहण क्षेत्र सैकड़ों-हजारों वर्ग किमी. में फैले हैं।
इन नदियों को तीन प्रमुख नदी-तंत्रों में विभाजित किया गया है।
- सिन्धु नदी-तंत्र,
- गंगा नदी-तंत्र तथा
- ब्रह्मपुत्र नदी-तंत्र।
सिन्धु नदी-तंत्र
इसके अन्तर्गत सिन्धु एवं उसकी सहायक नदियां सम्मिलित है। सिन्धु तिब्बत के मानसरोवर झील के निकट ‘चेमायुंगडुंग’ ग्लेशियर से निकलती है। यह 2,880 किमी. लम्बी है। भारत में इसकी लम्बाई 1,114 किमी.(पाक अधिकृत सहित, केवल भारत में 709 किमी.) है। इसका जल संग्रहण क्षेत्र 11.65 लाख वर्ग किमी. है।
सहायक नदियां :-
दायीं ओर से मिलने वाली – श्योक, काबुल, कुर्रम, गोमल।
बायीं ओर से मिलने वाली – सतलज, व्यास, रावी, चिनाब एवं झेलम की संयुक्त धारा(मिठनकोट के पास) तथा जास्कर, स्यांग, शिगार, गिलगिट।
1960 में हुए ‘सिन्धु जल समझौते’ के अन्तर्गत भारत सिन्धु व उसकी सहायक नदियों में झेलम और चेनाब का 20 प्रतिशत जल उपयोग कर सकता है जबकि सतलज, रावी के 80 प्रतिशत जल का उपयोग कर सकता है।
सिन्धु नदी भारत से होकर तत्पश्चात् पाकिस्तान से हो कर और अंतत: कराची के निकट अरब सागर में मिल जाती है।
झेलम नदी :-
- यह पीरपंजाल पर्वत की श्रेणी में शेषनाग झील के पास वेरीनाग झरने से निकलती है और बहती हुई वूलर झील में मिलती है और अंत में चिनाब नदी में मिल जाती है। इसकी सहायक नदी किशनगंगा है, जिसे पाकिस्तान में नीलम कहा जाता है।
- श्रीनगर इसी नदी के किनारे बसा है। श्रीनगर में इस पर ‘शिकारा ’ या ‘बजरे’ अधिक चलाए जाते हैं।
चिनाब नदी :-
यह नदी सिन्धु नदी की सबसे सहायक नदी है , जो हिमाचल प्रदेश में चन्द्रभागा कहलाती है। यह नदी लाहुल में बाड़ालाचा दर्रे के दोनों ओर से चन्द्र और भागा नामक दो नदियों के रूप में निकलती है।
रावी नदी :-
इस नदी का उद्गम स्थल हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में रोहतांग दर्रे के समीप है।
व्यास :-
इसका उद्गम स्थल भी हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में रोहतांग दर्रे के निकट व्यासकुंड है। यह सतलज की सहायक नदी है। यह कपूरथला के निकट ‘हरिके’ नामक स्थान पर सतलज नदी से मिल जाती है। यह पुर्ण रूप से भारत में(460-470 किमी.) बहती है।
सतलज नदी :-
यह तिब्बत में मानसरोवर के निकट राकस ताल से निकलती है और भारत में शिपकीला दर्रे के पास से प्रवेश करती है। भाखड़ा नांगल बांध सतलज नदी पर बनाया गया है।
गंगा नदी-तंत्र :-
उत्तराखण्ड के उत्तरकाशी जिले में गोमुख के निकट गंगोत्री हिमनद से भागीरथी के रूप में निकलकर देवप्रयाग में अलकनंदा एवं भागीरथी के संगम के बाद संयुक्त धारा गंगा नदी के नाम से जानी जाती है। इलाहाबाद के निकट गंगा से यमुना मिलती है जिसे संगम या प्रयाग कहा जाता है। प. बंगाल में गंगा दो धाराओं में बंट जाती है एक धारा हुगली नदी के रूप में अलग होती है जबकि मुख्यधारा भागीरथी के रूप में आगे बढ़ती है।
ब्रह्मपुत्र नदी बांग्लादेश में जमुना के नाम से भागीरथी(गंगा) में मिलती है। इनकी संयुक्त धारा को पद्मा कहा जाता है।
पद्मा नदी में बांग्लादेश में मेघना नदी मिलती है। बाद में गंगा एवं ब्रह्मपुत्र की संयुक्त धारा मेघना से मिलने के बाद मेघना के नाम से आगे बढ़ती है और छोटी-छोटी धाराओं में बंटने के बाद बंगाल की खाड़ी में गिरती है। गंगा-ब्रह्मपुत्र का डेल्टा विश्व का सबसे बड़ा डेल्टा माना जाता है। जिसका विस्तार हुगली और मेघना नदियों के बीच है। सुन्दरी वृक्ष की अधिकता के कारण इसे ‘सुन्दर वन डेल्टा’ कहा जाता है।
डेल्टा :-
नदी जब सागर या झील में गिरती है तो वेग में कमी के कारण मुहाने पर उसके मलबे का निक्षेप होने लगता है जिससे वहां विशेष प्रकार के स्थल रूप का निर्माण होता है। इस स्थल रूप को डेल्टा कहते हैं।
सहायक नदियां :-
बांयी ओर मिलने वाली – गोमती, घाघरा, गण्डक, बूढ़ीगंगा, कोशी, महानंदा, ब्रह्मपुत्र।
दांयी ओर मिलने वाली – यमुना, टोंस, सोन।
तथ्य :-
उत्तराखंड के सबसे फेमस टूरिस्ट डेस्टिनेशन ऋषिकेश में गंगा नदी पर देश का पहला ग्लास फ्लोर ब्रिज बनाया जाएगा। लक्ष्मण झूला के बराबर में बनने वाले इस ब्रिज का फर्श मजबूत पारदर्शी कांच का होगा।
यमुना नदी :-
यह गंगा की सबसे लम्बी(1,370 किमी.) सहायक नदी है। यह बंदरपूंछ श्रेणी पर स्थित यमुनोत्री हिमनद से निकलती है। इसकी प्रमुख सहायक नदियां हिंडन, ऋषि गंगा, चंबल, बेतवा, केन एवं सिंध है।
रामगंगा नदी :-
यह नैनीताल(गैरसेण के निकट गढ़वाल की पहाड़ीयां) से निकलकर कन्नौज के समीप गंगा में मिलती है।
गोमती :-
यह उत्तरप्रदेश के पीलीभीत जिले में स्थित फुलहार झील से निकलती है एवं गाजीपुर के निकट गंगा में मिलती है।
किनारे बसे शहर – लखनऊ, जौनपुर व गाजीपुर।
घाघरा(सरयु) नदी :-
यह नेपाल से काली और कर्नाली 2 धाराओं के रूप में निकलती है , जिसे भारत में शारदा और सरयू के नाम से जाना जाता है , इन दोनों धाराओं के मिलने से घाघरा नदी बनती है , जो छपरा के निकट गंगा नदी में मिल जाती है ।
किनारे बसे शहर – अयोध्या, फैजाबाद, बलिया।
गण्डक नदी :-
नेपाल में शालिग्रामी नदी नाम से जानी जाती है। भारत में पटना के निकट गंगा नदी में मिलती है।
कोसी नदी :-
7 धाराओं से मुख्य धारा अरूण नाम से माउण्ट एवरेस्ट के पास गोसाईधाम चोटी से निकलती है। भागलपुर जनपद में गंगा नदी में मिलती है। बार-बार अपना रास्ता बदलने एवं बाढ़ लाने के कारण यह नदी बिहार का शोक कहलाती है।
हुगली नदी ;-
प. बंगाल में गंगा की वितरिका के रूप में इसका उद्गम होता है तथा बंगाल की खाड़ी में गिरती है।
तमसा(दक्षिणी टोंस) नदी ;-
कैमूर की पहाड़ीयों से निकलकर इलाहबाद से आगे गंगा नदी में मिलती है।
सोन नदी ;-
अमरकंटक की पहाडि़यों से निकलकर पटना से पहले गंगा नदी में मिलती है।
यमुना की सहायक नदियां ;-
चम्बल ;-
- चम्बल मध्यप्रदेश के मऊ(इन्दौर) के समीप स्थित जानापाव पहाड़ी से निकलती है एवं इटावा के समीप यमुना नदी में मिलती है।
- सहायक नदियां – बनास, पार्वती, कालीसिंध एवं क्षिप्रा।
सिंध ;-
यह गुना जिले के सिरोंज तहसील के पास से निकलती है।
बेतवानदी ;-
यह मध्यप्रदेश के रायसेन जिले में विन्ध्य पर्वत माला से निकलती है। हमीरपुर के निकट यमुना नदी में मिलती है।
केन नदी ;-
यह मध्यप्रदेश के सतना जिले में कैमूर की पहाड़ी से निकलती है एवं बांदा के निकट यमुना में मिल जाती है।
ब्रह्मपुत्र नदी-तंत्र ;-
ब्रह्मपुत्र नदी का उद्गम तिब्बत में मानसरोवर झील के निकट आंग्सी हिमनद से होता है। तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी सांग्पो नाम से जानी जाती है। यह नामचाबर्वा पर्वत शिखर के निकट अरूणाचल प्रदेश में प्रवेश करती है तब इसका नाम दिहांग होता है। बाद में इसकी 2 सहायक नदी दिबांग और लोहित के मिलने के बाद यह ब्रह्मपुत्र नाम से जानी जाती है।
बांग्लादेश में ब्रह्मपुत्र को जमुना नाम से जाना जाता है। तीस्ता नदी ब्रह्मपुत्र से बांग्लादेश में मिलती है। इसके बाद ब्रह्मपुत्र पद्मा(गंगा) में मिल जाती है।
सहायक नदियां :-
दांयी ओर से मिलने वाली – सुबनसिरी, कामेंग, मानस, संकोज, तीस्ता।
बांयी ओर से मिलने वाली नदियां – लोहित, दिबांग, धनश्री, कालांग।
तथ्य :-
- असोम घाटी में ब्रह्मपुत्र नदी के गुंफित होने से माजुली द्वीप (विश्व का सबसे बड़ा नदी द्वीप ) का निर्माण हुआ है।
- भारत में बहने के अनुसर सबसे लम्बी नदी गंगा है और भारत में प्रवाहित होने वाली नदियों की कुल लंबाई के आधार पर ब्रह्मपुत्र सबसे लंबी नदी है।
प्रायद्वीपीय अपवाह तंत्र :-
भारतीय प्रायद्वीप में अनेक नदियां प्रवाहित हैं। मैदानी भाग की नदियों की अपेक्षा प्रायद्वीपीय भारत की नदियां आकार में छोटी हैं। यहां की नदियां अधिकांशतः मौसमी हैं और वर्षा पर आश्रित हैं। वर्षा ऋतु में इन नदियों के जल-स्तर में वृद्धि हो जाती है, पर शुष्क ऋतु में इनका जल-स्तर काफी कम हो जाता है। इस क्षेत्र की नदियां कम गहरी हैं, परंतु इन नदियों की घाटियां चौड़ी हैं और इनकी अपरदन क्षमता लगभग समाप्त हो चुकी है। यहां की अधिकांश नदियां बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं, कुछ नदियां अरब सागर में गिरती हैं और कुछ नदियां गंगा तथा यमुना नदी में जाकर मिल जाती हैं। प्रायद्वीपीय क्षेत्र की कुछ नदियां अरावली तथा मध्यवर्ती पहाड़ी प्रदेश से निकलकर कच्छ के रन या खंभात की खाड़ी में गिरती हैं।
ये नदियां दो भागों में विभक्त होती हैं –
- अरब सागर में गिरने वाली नदियां
- बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियां
अरब सागर में गिरने वाली नदियां :-
भादर नदी :-
यह गुजरात के राजकोट से निकलकर अरब सागर में गिरती है।
शतरंजी ;_
गुजरात के अमरेली जिले से निकलकर खंभात की खाड़ी में गिरती है।
साबरमती नदी :-
यह उदयपुर(राजस्थान) के निकट अरावली पर्वत माला से निकलती है एवं गुजरात होते हुए खंभात की खाड़ी में अपना जल गिराती है।
माही नदी :-
माही नदी मध्य प्रदेश के धार जिले में विन्ध्याचल पर्वत से निकलती है इसका प्रवाह मध्यप्रदेश, राजस्थान और गुजरात राज्यों में है। इसकी सहायक नदियां सोम एवं जाखम है। यह खंभात की खाड़ी में अपना जल गिराती है।
नर्मदा नदी :-
नर्मदा नदी मैकाल पर्वत की अमरकंटक चोटी से निकलती है। नर्मदा का प्रवाह क्षेत्र मध्यप्रदेश(87 प्रतिशत), गुजरात(11.5 प्रतिशत) एवं महाराष्ट्र(1.5 प्रतिशत) है।
यह नदी विन्ध्याचल पर्वत माला एवं सतपुडा पर्वतमाला के बीच भ्रंश घाटी में बहती है। यह अरबसागर में गिरने वाली प्रायद्वीपीय भारत की सबसे बड़ी नदी है। खंभात की खाड़ी में गिरने पर यह ज्वारनदमुख(एश्चुअरी) का निर्माण करती है।
सहायक नदियां – तवा, बरनेर, दूधी, शक्कर, हिरन, बरना, कोनार, माचक।
तथ्य
मध्य प्रदेश में नर्मदा जयंती पर अमर कंटक में तीन दिन के नर्मदा महोत्सव का आयोजन किया जाता है।
एस्चुअरी या ज्वारनदमुख :-
नदी का जलमग्न मुहाना जहाँ स्थल से आने वाले जल और सागरीय खारे जल का मिलन होता है नदी के जल में तीव्र प्रवाह के कारण जब मलवों का निक्षेप मुहाने पर नहीं होता है तथा नदी जल के साथ मलबा भी समुद्र में गिर जाता है तो नदी का मुहाना गहरा हो जाता है ऐसे गहरे मुहाने को ज्वारनदमुख कहते हैं।
तापी :-
- तापी मध्यप्रदेश के बैतुल जिले के मुल्लाई नामक स्थान से निकलती है। यह सतपुड़ा एवं अजंता पहाड़ी के बीच भ्रंश घाटी में बहती है। तापी नदी का बेसिन महाराष्ट्र(79 प्रतिशत), मध्यप्रदेश(15 प्रतिशत) एवं गुजरात(6 प्रतिशत) है।
- तापी की मुख्य सहायक नदी पूरणा है।
- तापी खंभात की खाड़ी में अपना जल गिराती है एवं एश्चुअरी का निर्माण करती है।
माण्डवी नदी :-
माण्डवी नदी कर्नाटक राज्य में पश्चिमी घाट पर्वत के भीमगाड झरने से निकलकर पश्चिम दिशा में प्रवाहित होते हुए गोवा राज्य से प्रवाहित होने के बाद अरब सागर में गिरती है।
जुआरी नदी :-
जुआरी नदी गोवा राज्य में पश्चिमी घाट से निकलकर पश्चिम दिशा में बहते हुए अरब सागर में गिरती है। यह गोवा की सबसे लंबी नदी है।
शरावती नदी :-
यह नदी कर्नाटक राज्य में पश्चिमी घाट पर्वत की अम्बुतीर्थ नामक पहाड़ी से निकलती है एवं कर्नाटक राज्य में बहते हुए अरब सागर में गिरती है। जोग जलप्रपात इसी नदी पर स्थित है।
गंगावेली नदी :-
यह नदी कर्नाटक राज्य में पश्चिमी घाट पर्वत से निकलकर कर्नाटक राज्य में बहते हुए अरब सागर में गिरती है।
पेरियार नदी :-
यह अन्नामलाई पहाड़ी से निकलती है एवं केरल राज्य में बहते हुए अरबसागर में गिरती है। यह केरल की दूसरी सबसे लंबी नदी है। इसे केरल की जीवन रेखा भी कहा जाता है। इसका प्रवाह क्षेत्र केरल एवं तमिलनाडु राज्यों में है।
भरतपूजा नदी :-
यह अन्नामलाई से निकलती है। इसका अन्य नाम पोन्नानी है। यह केरल की सबसे लंबी नदी है। इसका प्रवाह क्षेत्र केरल एवं तमिलनाडु है।
पंबा नदी :-
यह केरल की नदी है एवं बेम्बनाद झील में गिरती है।
बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियां :-
हुगली
यह नदी प. बंगाल में गंगा नदी की वितरिका के रूप में उद्गमित होती है एवं बंगाल की खाड़ी में जल गिराती है।
दामोदर :-
यह छोटा नागपुर पठार, पलामू जिला, झारखण्ड से निकलती है पूर्व दिशा में बहते हुए प. बंगाल में हुगली नदी में मिल जाती है। यह अतिप्रदूषित नदी है। यह बंगाल का शोक कहलाती है। इसका प्रवाह क्षेत्र झारखण्ड एवं प. बंगाल राज्य है।
स्वर्ण रेखा नदी :-
यह नदी रांची के पठार से निकलती है। यह पश्चिम बंगाल उडीसा के बीच सीमा रेखा बनाती है। यह बंगाल की खाड़ी में गिरती है।
वैतरणी नदी :-
यह ओडीसा के क्योंझर जिले से निकलती है। इसका प्रवाह क्षेत्र ओडीसा एवं झारखण्ड राज्य है। यह बंगाल की खाड़ी में जल गिराती है।
ब्राह्मणी नदी :-
इसकी उत्पत्ति ओडीसा राज्य की कोयेल एवं शंख नदियों की धाराओं के मिलने से हुई है। यह बंगाल की खाड़ी में अपना जल गिराती है।
महानदी :-
महानदी का उद्गम मैकाल पर्वत की सिंहाना पहाड़ी(धमतरी जिला, छत्तीसगढ़) से होता है। इसका प्रवाह क्षेत्र छत्तीसगढ़ एवं ओडीसा राज्य में है। यह बंगाल की खाड़ी में अपना जल गिराती है।
गोदावरी नदी :-
यह प्रायद्वीपीय भारत की सबसे लंबी नदी (1465 KM ) है। गोदावरी नदी का उद्गम नासिक जिले की त्र्यम्बक पहाड़ी से होता है। गोदावरी को ‘दक्षिण गंगा’ व ‘वृद्ध गंगा’ भी कहा जाता है।
गोदावरी महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, छत्तीसढ़, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश, ओडीसा, कर्नाटक एवं यनम(पुदुचेरी) राज्यों से होकर बहती है।
सहायक नदियां – दुधना, पूर्ण, पेन गंगा, वेनगंगा, इन्द्रावती, सेलूरी, प्राणहिता एवं मंजरा/मंजीरा(दक्षिण से मिलने वाली प्रमुख नदी)।
कृष्णा नदी :-
- कृष्णा नदी का उद्गम महाबलेश्वर से होता है। यह प्रायद्वीपीय भारत की दुसरी सबसे लंबी नदी है।
- यह बंगाल की खाड़ी में डेल्टा बनाती है।
- यह महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना एवं आंध्रप्रदेश से होकर बहती है।
- सहायक नदियां – भीमा, तुंगाभद्रा, कोयना, वर्णा, पंचगंगा, घाटप्रभा, दूधगंगा, मालप्रभा एवं मूसी।
पेन्नार नदी :-
यह कर्नाटक के कोलार जिले की नंदीदुर्ग पहाड़ी से निकलती है।
कावेरी नदी :-
- कावेरी कर्नाटक राज्य के कुर्ग जिले की ब्रह्मगिरी की पहाड़ीयों से निकलती है।
- दक्षिण भारत की यह एकमात्र नदी है जिसमें वर्ष भर सत्त रूप से जल प्रवाह बना रहता है। इसका कारण है – कावेरी का ऊपरी जलग्रहण क्षेत्र (कर्नाटक) दक्षिण-पश्चिम मानसून से वर्षा जल प्राप्त करता है जबकि निचला जलग्रहण क्षेत्र(तमिलनाडु), उत्तरी-पूर्वी मानसून से जल प्राप्त करता है।
- इसके अपवाह का 56 प्रतिशत तमिलनाडु, 41 प्रतिशत कर्नाटक व 3 प्रतिशत केरल में पड़ता है।
सहायक नदियां – लक्ष्मण तीर्थ, कंबिनी, सुवर्णावती, भवानी, अमरावती, हेरंगी, हेमावती, शिमसा, अर्कवती।
वैगाई नदी :-
यह तमिलनाडु के वरशानद पहाड़ी से निकलती है एवं पाक की खाड़ी में अपना जल गिराती है।
ताम्रपर्णी नदी :-
यह तमिलनाडु राज्य में बहती है एवं मन्नार की खाड़ी में अपना जल गिराती है।
अंतःस्थलीय नदियाँ :-
कुछ नदियाँ ऐसी होती है जो सागर तक नहीं पहुंच पाती
और रास्ते में ही लुप्त हो जाती हैं। ये अंतःस्थलीय नदियाँ कहलाती हैं।
घग्घर, लुनी नदी इसके मुख्य उदाहरण हैं।
घग्घर :-
यह एक मौसमी नदी हैं जो हिमालय की निचली ढालों से (कालका के समीप) निकलती है
और अनुपगढ़ (राजस्थान) में लुप्त हो जाती हैं। घग्घर को ही वैदिक काल की सरस्वती माना जाता है।
लूनी :-
लूनी उद्गम स्थल राजस्थान में अजमेर जिले के दक्षिण-पश्चिम में अरावली पर्वत का अन्नासागर है।
अरावली के समानांतर पश्चिम दिशा में बहती है। यह नदी कच्छ के रन के उत्तर में साहनी कच्छ में समाप्त हो जाती है।
भारत की प्रमुख झीलें :-
भारत में कई प्राकृतिक व मानवनिर्मित झीलें पायी जाती है।
प्राकृतिक झीलों को कई वर्गो में बांटा गया है।
विवर्तनिक झील :-
धरातल के बड़े भाग के धसने या उठने से इनका निर्माण होता है।
कश्मीर का वूलर झील(झेलम नदी पर) इसका उदाहरण है। यह भारत की मीठे पानी की सबसे बड़ी झील है।
लैगून अथवा अनूप झील :-
तटीय समुद्री जल का कुछ भाग बालू या प्रवाल भित्ति द्वारा मुख्य भूमि से अलग झीलनुमा आकृति बना लेता है। इसे ही लैगून झील कहते हैं। चिल्का सबसे बड़ी लैगून झील है। यह सबसे बड़ी तटीय झील भी है। यहां नौ-सेना का प्रशिक्षण केन्द्र भी है। पुलीकट झील(आंध्रप्रदेश व तमिलनाडु) बेम्बनाद(केरल), अष्ठामुडी(केरल), कोलेरू झील(आन्ध्र प्रदेश) अन्य प्रमुख लैगून झीले हैं।
हिमानी निर्मित झील :-
हिमानी या हिमनद के अपरदन से बनी झीले – राकसताल, नैनीताल, भीमताल, समताल इनके उदाहरण हैं।
वायु निर्मित झील :-
हवा द्वारा सतह की मिट्टी को उड़ाकर ले जाने से ऐसी झीलों का निर्माण होता है।
इन्हें ‘प्लाया’ झील भी कहते हैं। राजस्थान की सांभर, डीडवाना, पंचभद्रा प्रमुख उदाहरण हैं।
डेल्टाई झील :-
डेल्टाई झीलों का निर्माण डेल्टाई प्रदेशों में कई वितरिकाओं के मध्य छोटी बड़ी झीलों के रूप में होता है।
जो प्रायः मीठे जल की होती हैं। उदाहरण – कोलेरू झील।
क्रेटर झील :- ज्वालामुखी के क्रेटर में बनी झील । उदाहरण:- लोनार झील महाराष्ट्र
वूलर झील :-
जम्मू-कश्मीर में स्थित भारत की ‘वृहद्तम ताजे पानी की झील’ है।
वूलर झील झेलम नदी पर निर्मित विवर्तनिक(गोखुर) झील का उदाहरण है।
डल झील :-
जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर में हिमानी निर्मित ताजे जल की झील।
जयसमंद झील/ढेबर झील (उदयपुर) :-
राजस्थान में मीठे पानी की सबसे बड़ी कृत्रिम झील जयसमंद है।
चिल्का झील(उड़ीसा) :-
यह भारत की सबसे बड़ी लैगून झील है। यह एक खारे पानी की झील है।
रामसर आर्द्र भूमि सूची के अन्तर्गत चिल्का को 1981 में शामिल किया गया।
चिल्का झील के अंदर कई छोटे-छोटे द्वीप हैं। जिनमें ‘नालाबाना’ द्वीप प्रमुख है।
पुलिकट झील :-
यह झील आन्ध्र प्रदेश व तमिलनाडु की सीमा पर स्थित है यह 350 किमी. में फैला एक लैगून झील है
इसका 84 प्रतिशत आन्ध्रप्रदेश व 16 प्रतिशत तमिलनाडु की सीमा में स्थित है।
लोकटक झील :-
यह मणिपुर के विष्णुपुर जिले में स्थित है यह उत्तर पूर्वी भारत की सबसे बड़ी(300 किमी.) झील है।
यह विश्व की एक मात्र झील है जिसमे ‘केबुल लेमजाओ तेरता हुआ राष्ट्रिय उद्यान’ स्थित है ।
अपनी उत्पादकता और जैवविविधता के कारण यह झील ‘मणिपुर की जीवन-रेखा’ कहलाती है।
सांभर झील :-
यह झील जयपुर की फुलेरा तहसील में स्थित है। यह भारत में खारे पानी की आन्तरिक सबसे बड़ी झील है इसमें खारी, खण्डेला, मेन्था, रूपनगढ नदियां आकर गिरती है।
यह देश का सबसे बड़ा आन्तरिक स्त्रोत है यहां मार्च से मई माह के मध्य नमक बनाने का कार्य किया जाता है। यहां नमक केन्द्र सरकार के उपक्रम “हिन्दुस्तान साल्ट लिमिटेड” की सहायक कम्पनी ‘सांभर साल्ट लिमिटेड’ द्वारा तैयार किया जाता है। भारत के कुल नमक उत्पादन का 8.7 प्रतिशत यहां से उत्पादित होता है।
वेंबनाद झील :-
यह केरल में स्थित एक लैगून झील है। इसे भारत की सबसे लम्बा(96.5 किमी) झील माना जाता है। इस झील के पूर्वी तट पर ‘कुमारकोम पक्षी अभ्यारण’ स्थित है। प्रसिद्ध ‘नेहरू ट्राफी नौकायन प्रतियोगिता’ इस झील में प्रतिवर्ष ओणम पर्व के अवसर पर आयोजित की जाती है। इसी झील में ‘वेलिंगटन द्वीप’ है जहां पर भारत का सबसे छोटा राष्ट्रीय राजमार्ग NH-47A है।
पंचभद्रा (बाड़मेर) :-
राजस्थान के बाड़मेर जिले के बालोत्तरा के पास स्थित है।
अष्टमुदी झील :-
केरल के कोमल जिला स्थित लैगून झील जिसकी 8 शाखाएं हैं। रामसर समझौते द्वारा इसे अंतर्राष्ट्रीय महत्व की आर्द्र भूमि घोषित किया गया है।
चो-ल्हामु झील :-
यह सिक्किम के उत्तरी भाग में 18,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है, जो भारत की सबसे ऊंची झील है।
तथ्य :-
- भारत की सबसे बड़ी तटीय झील चिल्का झील(उड़ीसा) है।
- भारत की सबसे अधिक खारे पानी की झील सांभर झील(राजस्थान) है।
- भारत की सबसे बड़ी मीठे पानी की झील वूलर झील(ज.क.) है।
- गोबिंद सागर (भाखड़ा नागल बांध) हिमाचल प्रदेश में स्थित है। यह भारत की सबसे बड़ी मानव निर्मित झील है।
- भारत की सबसे ऊंचाई पर निर्मित झील चो-ल्हामु झील(सिक्किम) है।