ऊर्जा के परंपरागत और गैर –परंपरागत स्त्रोत

ऊर्जा के परंपरागत और गैर –परंपरागत स्त्रोत

ऊर्जा के परंपरागत और गैर –परंपरागत स्त्रोत :-

ऊर्जा के गैर-पारंपरिक स्रोतों का उपयोग करने की आवश्यकता क्यों है? - Quora

ऊर्जा :-

शारीरिक अथवा मानसिक रूप से सक्रिय रहने के लिए आवश्यक शक्ति अथवा क्षमता ऊर्जा कहलाती है। विशुद्ध भौतिक विज्ञान की शब्दावली के अनुसार, कार्य करने की क्षमता ऊर्जा कहलाती है।

ऊर्जा प्रदान करने वाले स्त्रोत ऊर्जा संसाधन कहलाते हैं। मानव जीवन की लगभग सभी भौतिक आवश्यकताएं ऊर्जा पर निर्भर हैं।

जिस प्रकार विभिन्न शारीरिक गतिविधियों एवं मानसिक सक्रियता हेतु मनुष्य भोजन के माध्यम  से ऊर्जा प्राप्त करता है, ठीक उसी प्रकार सभी प्रकार के उपकरणों, यंत्रों एवं मरीजों के संचालन हेतु ऊर्जा की आवश्यकता होती है।

ऊर्जा के संसाधन :-

वे पदार्थ अथवा स्त्रोत जो ऊर्जा प्रदान करते हैं ऊर्जा संसाधन कहलाते हैं। संसाधनों की सीमितता एवं पुनर्निमाण में लगने वाले समय के आधार पर ऊर्जा संसाधनों को मुख्यतः दो भागों में वर्गीकृत किया जाता है।

  1. नवकरणीय ऊर्जा संसाधन / गैर –परंपरागत स्त्रोत
  2. गैर-नवकरीण ऊर्जा संसाधन / परंपरागत स्त्रोत

ऊर्जा संसाधनों का वर्गीकरण :-

नवकरीण ऊर्जा संसाधन / गैर –परंपरागत स्त्रोत

  1. सौर ऊर्जा
  2. पवन ऊर्जा
  3. जल विद्युत ऊर्जा
  4. महासागरीय ऊर्जा
  5. भूतापीय ऊर्जा
  6. जैव भार जैव ईंधन
  7. हाइड्रोजन ऊर्जा

गैर- नवकरणीय ऊर्जा / परंपरागत स्त्रोत :-

  1. कोयला
  2. पेट्रोलियम (डीजल, केरोसिन, पेट्रोल आदि)
  3. प्राकृतिक गैस
  4. शेल गैस
  5. नाभिकीय ऊर्जा

नवकरणीय ऊर्जा संसाधन :-

ऐसे ऊर्जा संसाधन जो प्रकृति में असीमित मात्रा में विद्यमान हैं तथा जिनका प्रकृति द्वारा स्वतः एवं लगातार पुनर्भरण किया जा सकता है, नवकरणीय ऊर्जा संसाधन कहलाते हैं। उपभोग के कारण कभी भी पूर्ण रूप से खत्म न होने के विशिष्ट गुण के कारण इन्हें अक्षय ऊर्जा स्त्रोत भी कहा जाता है।

नवकरणीय ऊर्जा संसाधनों के उपयोग ने पर्यावरण प्रदूषण को कम किया है, परन्तु बायोमास ऊर्जा का आंतरिक प्रदूषण में प्रमुख योगदान है।

सौर ऊर्जा :-

सौर ऊर्जा का सबसे बड़ा बाजार बनता भारत – DW – 27.03.2017
  • भारत एक उष्ण कटिबंधीय देश है। जहाँ पर सौर ऊर्जा के उत्पादन की अपार संभावनाएँ उपलब्ध है।
  • देश के अधिकाँश भागों में 300 से भी अधिक दिन खुली और स्वच्छ धूप प्राप्त होती है। यहाँ प्रति वर्ष 5000 ट्रीलियन किलोवाट/ प्रति घण्टा सूर्य विकिरण प्राप्त होता है।
  • सौर ऊर्जा से पानी गरम करने, फसलें पकानें, भोजन बनाने, विद्युत पम्प चलाने जैसे एवं औद्योगिक एवं घरेलू विद्युत उत्पादन का कार्य किया जाने लगा है।
  • ऊर्जा मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर सौर तापीय ऊर्जा कार्यक्रम एवं सौर फोटोवोल्टीक कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं।
  • भारत में आंध्रप्रदेश के तिरूपति बालाजी देवस्थान द्वारा विश्व की सबसे बड़ी सौर ऊर्जा संचालित भोजन बनाने की प्रणाली अक्टूबर 2002 में शुरू की गई। जिसमें 15000 लोगों का प्रतिदिन भोजन तैयार किया जा रहा है।
  • प्रधानमंत्री ने गुजरात के मेहसाणा ज़िले के एक गाँव मोढेरा को भारत का पहला सौर ऊर्जा संचालित गाँव घोषित किया।
  • सौर ऊर्जा उत्पादन में सौर ऊर्जा गाँव आत्मनिर्भर होगा, क्योंकि यह गाँव के घरों पर लगाए गए 1000 सौर पैनलों का उपयोग करेगा, जिससे ग्रामीणों के लिये चौबीसों घंटे बिजली पैदा होगी।
  • राजस्थान में बिडला इस्टूट ऑफ टेक्नोलॉजी एण्ड साइन्स पिलानी में राजस्थान का सबसे बड़ा सौर ऊर्जा वाटर हीटर लगाया गया है। जहाँ 55 हजार लीटर पानी को गर्म किया जा रहा है।
  • सौर ऊर्जा का अब वाणिज्यिक स्तर पर भी प्रयोग किया जाने लगा है।
  • वर्तमान में देश में 60 शहरों को सौर ऊर्जा नगरों के रूप में विकसित करने की योजना है।
  • इस योजना के तहत 50 हजार से 5 लाख तक की जनसंख्या वाले नगरों को सम्मिलित किया गया है।
  • देश में सौर ऊर्जा के विकास के लिये 11 जनवरी, 2010 को जवाहर लाल नेहरू सोलर मिशन प्रारम्भ किया गया ।

भारत में सौर ऊर्जा की स्थिति:-

  • पिछले 8 वर्षों में स्थापित सौर ऊर्जा क्षमता में 19.3 गुना वृद्धि हुई है और यह 56.6 GW है।
  • इसके अलावा भारत ने वर्ष 2022 के अंत तक 175 गीगावाट (GW) अक्षय ऊर्जा क्षमता हासिल करने का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है, जिसे वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट तक पहुँचाने का लक्ष्य रखा गया है। यह अक्षय ऊर्जा के लिये दुनिया की सबसे बड़ी योजना है।
  • भारत नई सौर ऊर्जा क्षमता के मामले में एशिया में दूसरा और विश्व स्तर पर तीसरा सबसे बड़ा बाज़ार है। यह पहली बार जर्मनी (59.2 GW) को पछाड़ते हुए कुल स्थापित क्षमता (60.4 GW) के क्षेत्र में चौथे स्थान पर है।
  • जून 2022 तक राजस्थान और गुजरात बड़े पैमाने पर सौर ऊर्जा उत्पादन के मामले शीर्ष राज्य थे, जिनकी स्थापित क्षमता क्रमशः 53% एवं 14% थी, इसके बाद महाराष्ट्र (9%) का स्थान है।

संबंधित पहलें:-

सौर पार्क योजना:-

 सौर पार्क योजना कई राज्यों में लगभग 500 मेगावाट (MW) क्षमता वाले कई सोलर पार्क बनाने की योजना है।

solar power plant in bhagalpur and lakhisarai news update of bihar industry  project skt | बिहार के भागलपुर व लखीसराय में सबसे बड़ा विद्युत प्रोजेक्ट,1  रुपये सालाना की लीज पर कंपनी को

रूफटॉप सौर योजना:-

 रूफटॉप सौर योजना का उद्देश्य घरों की छत पर सोलर पैनल लगाकर सौर ऊर्जा का दोहन करना है।

Solar Rooftop Yojana:सरकारी सब्सिडी पर लगवाएं अपने घर की छत पर सोलर पैनल,  जानिए कैसे करना है आवेदन - Solar Rooftop Yojana Know All Details About This  Scheme - Amar Ujala Hindi

अटल ज्योति योजना (अजय):-

अजय योजना सितंबर 2016 में उन राज्यों में सौर स्ट्रीट लाइटिंग (SSL) प्रणाली की स्थापना के लिये शुरू की गई थी, जहाँ 50% से कम घरों में ग्रिड आधारित बिजली का उपयोग शामिल है (2011 की जनगणना के अनुसार)।

अजय कार्यक्रम – Energy Efficiency Services Limited

राष्ट्रीय सौर मिशन:-

 यह भारत की ऊर्जा सुरक्षा चुनौती को संबोधित करते हुए पारिस्थितिक रूप से सतत् विकास को बढ़ावा देने के लिये भारत सरकार और राज्य सरकारों की एक प्रमुख पहल है।

सृष्टि योजना:-

भारत में रूफटॉप सौर ऊर्जा परियोजनाओं को बढ़ावा देने के लिये सोलर ट्रांसफिगरेशन ऑफ इंडिया (सृष्टि) योजना का कार्यान्वयन किया जा रहा है

भारत के प्रमुख सोलर प्लांट :-

क्र. सं.भारत में सोलर पावर प्लांट का नामराज्य
1.गैलीवेडु सोलर प्लांटआंध्र प्रदेश
2.एनपी कुंटाआंध्र प्रदेश
3.कुरनूल अल्ट्रा मेगा सोलर प्लांटआंध्र प्रदेश
4.कडप्पा अल्ट्रा मेगा सोलर प्लांटआंध्र प्रदेश
5.कामुथी सौर ऊर्जा संयंत्रतमिलनाडु
6.मंदसौर सोलर प्लांटमध्य प्रदेश
7.रीवा अल्ट्रा मेगा सोलरमध्य प्रदेश
8.पावागड़ा सोलर प्लांटकर्नाटक
9.भादला सोलर प्लांटराजस्थान
10.चरणका सोलर प्लांटगुजरात

एनपी कुंटा अल्ट्रा मेगा सोलर प्लांट :-

  • अनंतपुरम अल्ट्रा मेगा सोलर प्लांट के रूप में लोकप्रिय, एनपी कुंटा अल्ट्रा मेगा सोलर प्लांट आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले में नंबुलापुलकुंटा मंडल में स्थित एक सोलर पार्क है, जो 7,924.76 एकड़ भूमि क्षेत्र को कवर करता है।
  • आंध्र प्रदेश सोलर पावर कॉरपोरेशन प्राइवेट लिमिटेड (APSPCL) संयंत्र का मालिक है और मई 2016 में पूरा हुआ था।

कडपा अल्ट्रा मेगा सोलर प्लांट :-

  • यह आंध्र प्रदेश के कडप्पा जिले के मायलावरम मंडल में स्थित है। इसका कुल क्षेत्रफल 5,927.76 एकड़ है।
  • आंध्र प्रदेश सोलर पावर कॉरपोरेशन प्राइवेट लिमिटेड (APSPCL), सोलर एनर्जी कॉरपोरेशन ऑफ़ इंडिया (SECI), आंध्र प्रदेश पावर जनरेशन कॉरपोरेशन और आंध्र प्रदेश लिमिटेड के न्यू एंड रिन्यूएबल एनर्जी डेवलपमेंट कॉरपोरेशन के बीच एक साझेदारी पहल को लागू कर रही है।

कामुथी सौर ऊर्जा परियोजना :-

  • यह कामुथी, रामनाथपुरम जिले, तमिलनाडु, भारत में स्थित एक 2,500 एकड़ की फोटोवोल्टिक ऊर्जा सुविधा है।
  • यह मदुरै से 90 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

पावागड़ा सोलर प्लांट :-

  • यह कर्नाटक के तुमकुर जिले के पावागड़ा तालुक में स्थित एक सोलर पार्क है, जिसका कुल आकार 53 वर्ग किलोमीटर (13,000 एकड़) है।
  • यह 2050 मेगावाट की क्षमता वाला दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा फोटोवोल्टिक सौर पार्क है।
  • यह वर्ष 2019 में समाप्त हो गया था।

चरणका सोलर प्लांट :-

    यह अब उत्तरी गुजरात के पाटन जिले में चरंका इलाके के पास 2,000 हेक्टेयर (4,900 एकड़) क्षेत्र में निर्माणाधीन है।

कुरनूल अल्ट्रा मेगा सोलर प्लांट :-

  • यह आंध्र प्रदेश के कुरनूल जिले के पनयम मंडल में स्थित 5,932.32 एकड़ के संयुक्त आकार के साथ 1,000 मेगावाट का सोलर पार्क है।
  • आंध्र प्रदेश सौर ऊर्जा निगम प्राइवेट लिमिटेड ने 29 मार्च, 2017 को इसका उद्घाटन किया।

भादला सोलर प्लांट :-

  • यह वर्तमान में पृथ्वी पर सबसे बड़ा सौर ऊर्जा संयंत्र है। भारत में सोलर पावर प्लांट (Solar Power Plants in India Hindi me) में इसका नाम अव्वल है।
  • यह भादला, फलोदी तहसील, जोधपुर जिले, राजस्थान, भारत में स्थित है। यह 14,000 एकड़ के कुल क्षेत्रफल में फैला हुआ है
  • क्षेत्र में जलवायु “लगभग निर्जन है।” यहां का औसत तापमान 46-48 डिग्री सेल्सियस के आसपास रहता है। गर्म हवाएं और रेतीले तूफान आम हैं
  • इसकी क्षमता 2,245 मेगावाट (मेगावाट) है।
  • 10,000 करोड़ रुपये (US$1.3 बिलियन) के खर्च के साथ पूरी क्षमता तक पहुंचने पर यह दुनिया का सबसे बड़ा क्षमता वाला सोलर पार्क बन जाएगा।

रीवा अल्ट्रा मेगा सोलर प्लांट :-

  • यह ग्रिड तटस्थता हासिल करने वाली देश की पहली सौर परियोजना है।
  • यह एशिया का सबसे बड़ा एकल सौर ऊर्जा संयंत्र है।
  • इसकी क्षमता 750 मेगावाट है ।
  • परियोजना की निष्पादन एजेंसी, रीवा अल्ट्रा मेगा सोलर लिमिटेड (RUMSL), मध्य प्रदेश ऊर्जा विकास निगम लिमिटेड (MPUVNL) और भारतीय सौर ऊर्जा निगम (SECI) का एक सहयोगी प्रयास है।
  • रीवा एक क्रॉस-स्टेट ओपन कनेक्टिविटी उपभोक्ता, दिल्ली मेट्रो को ऊर्जा प्रदान करने वाला भारत का पहला उद्यम है।
  • यह भारत की पहली पहल है जिसमें रेलवे प्रणोदन के लिए सौर ऊर्जा का उपयोग शामिल है।
  • इस पहल को विश्व बैंक समूह से राष्ट्रपति पदक भी मिला।

गैलीवेडु सोलर प्लांट :-

  • आंध्र प्रदेश सोलर पावर कॉर्प प्राइवेट लिमिटेड (APSPCL) ने गैलीवेडु, आंध्र प्रदेश, भारत में एक सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित करने का प्रस्ताव रखा।
  • APSPCL संयुक्त रूप से आंध्र प्रदेश पावर जनरेशन कॉर्पोरेशन लिमिटेड (APGENCO), सोलर एनर्जी कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (SECI), और आंध्र प्रदेश न्यू एंड रिन्यूएबल एनर्जी कॉर्प (NREDCAP) के स्वामित्व में है।
  • परियोजना के हिस्से के रूप में, 1,214 हेक्टेयर भूमि पर 500 मेगावाट की सौर ऊर्जा सुविधा स्थापित की जाएगी। सबस्टेशन का निर्माण, पहुंच मार्ग, और सहायक बुनियादी ढांचे के साथ-साथ सौर पैनलों, ट्रांसफार्मर और ट्रांसमिशन लाइनों की स्थापना, सभी परियोजना का हिस्सा हैं।
  • 16 सितंबर 2014 को, आंध्र प्रदेश कैबिनेट ने गैलीवेडु में सौर ऊर्जा सुविधा के विकास को मंजूरी दी।
  • 6 जुलाई 2016 को, SECI ने परियोजना के लिए चयन के लिए अनुरोध (RFS) प्रकाशित किया।
  • परियोजना अभी भी जुलाई 2017 तक स्थानीय अधिकारियों से अनुमोदन के लिए लंबित है।

मंदसौर सोलर प्लांट :-

  • 250 मेगावाट की मंदसौर सौर परियोजना मध्य प्रदेश में स्थित है।
  • MPPMCL (मध्य प्रदेश पावर मैनेजमेंट कंपनी लिमिटेड) को मंदसौर परियोजना द्वारा उत्पादित बिजली का 100% प्राप्त होता है, जिसकी क्षमता 250 मेगावाट है।
  • इसकी योजना के दो चरण हैं।

तैरता हुआ सौर ऊर्जा संयंत्र :-

ओंकारेश्वर :-

  • मध्य प्रदेश के खंडवा में दुनिया का सबसे बड़ा तैरता सौर ऊर्जा संयंत्र बनने जा रहा है।
  • विश्व का सबसे बड़ा तैरता सौर ऊर्जा संयंत्र मध्य प्रदेश के खंडवा में नर्मदा नदी के ओंकारेश्वर बांध  बनाया जाएगा जो 2022-23 तक 600 मेगावाट बिजली पैदा करेगा। ।
  • omkareshwar solar plant world biggest floating plant first phase starts cm  shivraj singh ngmp | दुनिया की सबसे बड़ी ओंकारेश्वर सोलर परियोजना आज MP में  होगी शुरू, जानिए क्यों है बेहद ...

रामगुंडम  :-

तेलंगाना के रामागुंडम में 100 मेगावाट की तैरती सौर परियोजना है। जिसका संचालन 2022 से किया जा रहा है ।

पवन ऊर्जा :-

पवन ऊर्जा (Wind energy) – मराठी विश्वकोश
  • पवन, नवीकरणीय ऊर्जा का प्रमुख स्त्रोत है। इसकी गतिज ऊर्जा को पवन चक्की से जुड़ी टरबाइन द्वारा यांत्रिक ऊर्जा में तथा यांत्रिक ऊर्जा को जनरेटर की सहायता है विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है।
  • चीन, जर्मनी, अमेरिका, डेनमार्क, स्पेन तथा भारत कुल पवन ऊर्जा का 80 प्रतिशत उत्पादित करते हैं।
  • भारत में गुजरात तथा तमिलनाडु में पवन ऊर्जा की सबसे अधिक क्षमता है। देश में सर्वाधिक पवन टरबाइन तमिलनाडु में मुप्पनडल पेरूगुडी (150 मेगावाट उत्पादन क्षमता)  (कन्याकुमारी के निकट) में स्थापित किए गए हैं।
  • महाराष्ट्र का सतारा जिला पवन ऊर्जा संयंत्र के लिए प्रसिद्ध है। पवन ऊर्जा उत्पन्न करने हेतु यहां पर 500 टावर लगाए गए हैं।
  • भारत जैसे विशाल देश में पवन ऊर्जा की कुल क्षमता 65000 मेगावाट है।
  • भारत लगभग 7,516.6 किलोमीटर लंबी तटरेखा वाला देश है और इसके सभी विशिष्ट आर्थिक क्षेत्रों में पवन ऊर्जा का विकास करने का पर्याप्त अवसर है।
  • राष्ट्रीय पवन ऊर्जा संस्थान, चेन्नई द्वारा यह बताया गया है कि गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक से तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश तक एक स्थिर तथा निरंतर वायु के प्रवाह के मामले में पश्चिमी राज्यों में असीम संभावनाएँ हैं।
  • तमिलनाडु 9,075 मेगावाट क्षमता के साथ पवन ऊर्जा का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है।

जल विद्युत :-

जल विद्युत ऊर्जा ( Jal Vidyut Oorja )
  • टरबाइन के ऊपर ऊँचाई से जल प्रवाहित करने पर टरबाइन द्वारा जल की गतिज ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में परिवर्तित कर दिया जाता है, जो विद्युत जनरेटर द्वारा विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित कर दी जाती है। यह सस्ता स्वच्छ ऊर्जा स्त्रोत तथा पर्यावरण अनुकूल है अर्थात इसके उत्पादन में हानिकार गैसों का उत्सर्जन नहीं होता है।
  • विश्व के कुल ऊर्जा उत्पादन का एक-चैथाई भाग जल विद्युत से उत्पादित किया जाता है।
  • भारत में अनेक बहुउद्देशीय परियोजनाएं संचालि है जो जल विद्युत ऊर्जा उत्पन्न करती हैं। जैसे भाखड़ा-नांगल, दामोदर घाटी, कोयना हाइड्रो परियोजना आदि।
  • अरूणाचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, जम्मू एवं कश्मीर उत्तराखंड, सिक्किम, मेघालय तथा केल जल विद्युत का प्रमूख स्त्रोत हैं।

महासागरीय ऊर्जा :-

तरंग ऊर्जा या तरंग ऊर्जा | ग्रीन रिन्यूएबल्स

पृथ्वी की सतह के लगभग 70 प्रतिशत  भाग पर महासागरों का विस्तार है जो ऊर्जा के वृहद् भंडार हैं यद्यपि अब तक इनकी संभावित क्षमता का समुचित उपयोग नहीं हो पाया है। महासागरीय ऊर्जा के विभिन्न रूप है जो निम्न प्रकार हैं-

  1. तरंग ऊर्जा
  2. ज्वारीय ऊर्जा
  3. धारा ऊर्जा

तरंग ऊर्जा  :-

  • समुद्र में उत्पन्न लहरों की गतिज ऊर्जा को टरबाइन की सहायता से विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है।
  • भारत के तटीय क्षेत्रों में तरंग ऊर्जा की संभावित क्षमता लगभग 40 हजार मेगावाट है।

ज्वारीय ऊर्जा  :-

  • चंद्रमा के गुरूत्वाकर्षण बल के कारण पृथ्वी पर स्थित महासागरों में प्रति 12 घण्टे ज्वारीय चक्र उत्पन्न होता है। इस दौरान समुद्री जल एक बार ऊपर उठता है एवं एक बार नीचे की ओर जाता है जिन्हें क्रमशः उच्च ज्वार तथा निम्न ज्वार कहा जाता है। निम्न ज्वार से उच्च ज्वार के मध्य समुद्री जल की ऊंचाई से होने वाला परिवर्तन जल की स्थितिज ऊर्जा का स्त्रोत होता है।
  • परम्परागत जलाशयों में जल विद्युत उत्पादन की प्रक्रिया के समान ही उच्च ज्वार के समय समुद्री जल एक बैराज में रोक लिया जाता है तथा निम्न ज्वार के समय उसे टरबाईन से होकर गुजारा जाता है, जिससे विद्युत ऊर्जा का उत्पादन होता है।
  • ज्वारीय ऊर्जा से पर्याप्त मात्रा में विद्युत उत्पादन करने के लिए उच्च ज्वार की ऊंचाई निम्न ज्वार से न्यूनतम 5 मीटर अधिक होनी चाहिए।
  • भारत में गुजरात के तट पर खम्भात की खाड़ी में ज्वारीय ऊर्जा से विद्युत उत्पादन की संभावना है।

धारा ऊर्जा :-

  • एक दिशा में प्रवाहित होने वाले महासागरीय जल को महासागरीय धारा कहा जाता है। उदाहरण के तौर पर गल्फ स्ट्रीम, हम्बोल्ट आदि। समुद्र ज्वार के कारण भी महासागरीय धाराएं उत्पन्न होती हैं। समुद्र के भीतर टरबाईनें लगाकर इन धाराओं की गतिज ऊर्जा से विद्युत ऊर्जा का उत्पादन किया जाता है।

भू-तापीय ऊर्जा :-

भू-तापीय ऊर्जा - विकिपीडिया
  • पृथ्वी के आंतरिक भागों में उत्पन्न ताप का प्रयोग करके उत्पन्न की जाने वाली विद्युत को भू-तापीय ऊर्जा कहते हैं।
  • जब पृथ्वी के आंतरिक भाग से मैग्मा निकलता है, तो अत्याधिक ऊष्मा मुक्त होती है। इस तापीय ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है।
  • इसके अतिरिक्त, गीजर ( गर्म जल का प्राकृतिक स्त्रोत) से निकलते हुए गर्म पानी से भी ताप ऊर्जा का उत्पादन किया जा सकता है। इसे एक वैकल्पिक स्त्रोत के रूप में विकसित किया जा सकता है।
  • भू-तापीय ऊर्जा इसलिए अस्तित्व में आती है क्योंकि बढ़ती गहराई के साथ पृथ्वी के आंतरिक भाग का तापमान बढ़ता जाता है। जहाँ भूतापीय अंतर अधिक होता है वहां कम गहराई पर भी अधिक तापमान पाया जाता हैं ऐसे क्षेत्रों में स्थित भूमिगत जल, चट्टानों से ऊष्मा का अवशोषण कर गर्म हो जाता है तथा पृथ्वी की सतह की ओर उठते हुए वाष्प में परिर्तित हो जाता है। इसी वाष्प का उपयोग टरबाईन को चलाने और विद्युत उत्पन्न करने के लिए किया जाता है।
  • भूमिगत ताप के उपयोग का पहला सफल प्रयस 1890 ई में बायजे शहर, इडाहो (यू.एस.ए) में हआ था, जहां आसपास के भवनों को ताप देने के लिए गर्म जल के पाइपों का नेटवर्क बनाया गया था यह संयंत्र वर्तमान समय में भी कार्य कर रहा है।

जैव भार ऊर्जा :-

  • जैव भार ऊर्जा का महत्वपूर्ण स्त्रोत है। यह पौधों एवं जंतुओं के कार्बनिक अपशिष्ट (जैसे- गन्ने की खोई, चावल की भूसी, पुआल आदि) से उत्पन्न की जाती है। इसके प्रमुख स्त्रोत टिम्बर उद्योग, कृषि एवं घरेलू अपशिष्ट, नगरपालिका एवं औद्योगिक अपशिष्ट हैं।
  • जैवभार सदैव एक महत्वपूर्ण ऊर्जा स्त्रोत रहा है। देश में प्रयोग की जाने वाली प्राथमिक ऊर्जा का 32 प्रतिशत जैवभार से प्राप्त किया जाता है। तथा लगभग 70 प्रतिशत जनसंख्या अपनी ऊर्जा आवश्यकता के लिए इस पर निर्भर है।
  • जैवभार की संभावनाओं एवं ऊर्जा में इसकी भूमिका को पहचानते हुए, नवीन एवं नवकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने जैवभार ऊर्जा को कुशल तकनीकों तथा अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रकों में इसके प्रयोग को प्रोत्साहित व संर्धन देने हेतु अनेक कार्यक्रम प्रारंभ किए हैं।

शैवाल ऊर्जा :-

  • लगातार बढ़ रही ऊर्जा आवश्यकतओं एवं पर्यावरणीय प्रदूषण के मध्य मानव, जैव ईंधन एवं बायोगैस जैसे नवकरणीय ऊर्जा संसाधनों पर विचार करने पर बाध्य हुआ है। इसी क्रम में समुद्री शैवाल की पहचान स्थायी जैव ईंधन के रूप में की गई है।
  • समुद्री शैवालों में सेल्युलोज की कमी तथा जैव तेल की अधिकता होती है। इस जैव तेल को विभिन्न तापीय उपचार एवं किणवन के माध्यम से जैव ईंधन में परिवर्तित किया जा सकता हैं

बायोगैस :-

  • बायोगैस एक जैव ईंधन जो जैविक अपशिष्ट के अपघटन से उत्पन्न होती है। जब खाद्य पदार्थ, पशुओं द्वारा उत्सर्जित अपशिष्ट एवं सूखे पत्ते व अन्य जैविक अपशिष्ट अवायवीय (आॅक्सीजन रहित) वातावरण में अपघटित होते हैं तो उनसे मीथेन तथा कार्बन डायआॅक्साइड सहित अनेक गैसों का मिश्रण उत्सर्जित होता है, जिसे बायोगैस कहा जाता है।
  • बायोगैस में मीथेन की 50-75 प्रतिशत मात्रा होने के कारण यह अत्यधिक ज्वलनशील होती है। इसलिए बायोगैस को ईंधन के रूप में प्रयोग किया जाता है।
  • बायोगैस उत्पादन एक स्वच्छ व भिन्न कार्बन  तकनीक है, जो जैविक अपशिष्ट को स्वच्छ व नवीकरणीय जैव ईंधन तथा जैविक उर्वरक में परिवर्तित कर देती है। इसप्रकार इसमें सतत आजीविका केन्द्र के विकास तथा स्थानीय व वैश्विक प्रदूषण के समाधान की संभावनाएँ विद्यमान हैं।

ईंधन सेल :-

  • ईंधन सेल ईंधन (हाइड्रोजन अथवा हाइड्रोजन स्त्रोत) तथा एक आॅक्सीकारक का संयोजन होता है। यह एक विद्युत रासायनिक उपकरण है जो रासायनिक ऊर्जा को विद्युत एवं ताप ऊर्जा में परिवर्तित करता हैं इस प्रक्रिया के द्वारा ईंधन के दहन से बचा जा सकता है।
  • वाहनों में ईंधन सेल का प्रयोग करने से बहुत ही कम मात्रा में प्रदूषण होता है।
  • हाइड्रोजन एवं फास्फोरिक एसिड सामान्य प्रकार के ईंधन सेल हैं।
  • इनके सफल प्रयोग के कारण अंतरिक्षयानों में इनका उपयोग किया जा रहा है।

हाइड्रोजन ऊर्जा :-

  • हाइड्रोजन को जलाये जाने पर उप-उत्पाद के रूप में पानी का उत्पाद होता है फलतः इसे न केवल कुशल ऊर्जा वाहक बल्कि एक स्वच्छ एवं पर्यावरणा हितैषी ईंधन के रूप में भी पाया जाता है।
  • पृथ्वी पर हाइड्रोजन मिश्रित अवस्था में पायी जाती है इसलिए इसका उत्पादन इसके यौगिक की अपघअन प्रक्रिया द्वारा किया जाता है। हाइड्रोजन उत्पादन के लिए तीन विधियों जैसे -तापीय विधि, विद्युत अपघटन विधि एवं प्रकाश अपघटन विधि का प्रयोग किया जाता है।
  • हाइड्रोजन ऊर्जा  का प्रयोग परिवहन, विद्युत उत्पादन के साथ-साथ अंतरिक्ष यानों में भी किया जा सकता है। अतः इसकी उपयोगिता को देखते हुए इसे भविष्य का ईंधन भी कहा जाता है। हाइड्रोजन के महत्व को देखते हुए भारत सरकार द्वारा वर्ष 2003 में राष्ट्रीय हाइड्रोजन बोर्ड का गठन किया गया है।

गैर- नवकरणीय ऊर्जा / परंपरागत स्त्रोत :-

कोयला :-

भारत विश्व में कोयला उत्पादन की दृष्टि से चीन व अमेरिका के बाद तीसरे स्थान पर है।

कोयले का उपयोग तापीय ऊर्जा संयंत्र में किया जाता है , जिसके बारे में हम पढ़ चुके है ।

पेट्रोलियम :-

  • भारत में विश्व का कुल संचित तेल का 0.5 प्रतिशत खनिज तेल उपलब्ध है।
  • तेल एवं प्राकृति गैस आयोग (ONGC) : 1953 से भारतीय भू वैज्ञानिक सर्वेक्षण विभाग ने देश के विभिन्न हिस्सों में प्राकृतिक तेल की खोज का कार्य प्रारम्भ किया।
  • 1956 में तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग का गठन किया गया।
  • भारत पेट्रोलियम कारोशन : जनवरी 1976 से भारत सरकार ने बर्मा शैल रिफाइनरी और बर्मा शैल ऑयल कम्पनी पर अधिकार करके भारत पेट्रोलियम कारोशन बनाया गया।
  • ऑयल इण्डिया लिमिटेड : खनिज तेल एवं प्राकृतिक गैस की खोज, खुदाई और उत्पादन करके उन्हें तेल शोधन कारखानों और उपभोक्ताओं तक पहुँचाने का कार्य ऑयल इण्डिया लिमिटेड करता है।

आणविक ऊर्जा :-

  • देश में ऊर्जा की बढ़ती हुई माँग और सीमित संसाधनों को देखते हुए परमाणु ऊर्जा का विकास किया गया है।
  • यह ऊर्जा रेडियोधर्मी परमाणुओं के विखण्डन से प्राप्त की जाती है।
  • प्राकृतिक विखण्डन जटिल एवं खर्चीला होता है।
  • परन्तु इससे प्राप्त विद्युत पर्याप्त सस्ती पड़ती है।
  • इसका कारण है कि एक किलोग्राम यूरेनियम से जितनी विद्युत पैदा की जा सकती है
  • उसने के लिये 20 से 25 लाख किलोग्राम कोयले की आवश्यकता होती है।
  • भारत में परमाणु ऊर्जा का विकास अन्य देशों की तुलना में अभी कम है।
  • यहाँ देश के कुल ऊर्जा का तीन प्रतिशत भाग परमाणु ऊर्जा से सम्बन्धित है।
  • देश में परमाणु ऊर्जा के विकास करने के लिये 1954 में परमाणु ऊर्जा विभाग स्थापित किया गया है।

परमाणु शक्ति के स्रोत :-

परमाणु शक्ति के लिये रेडियोधर्मिता युक्त विशिष्ट प्रकार के खनिजों, यूरेनियम, थोरियम, बेरेलियम, ऐल्मेनाइट, जिरकन, ग्रेफाइट और एन्टीमनी का प्रयोग किया जाता है।

विद्युत गृह प्रारम्भ होने का समय       क्षमता (MW)
1 तारापुर (महाराष्ट्र)1969, 1970                  160 x 2
2 रावतभाटा-I (राजस्थान) 1973, 1981                    200 x 2
3 कलपक्कम (तमिलनाडु) 1984, 1986                    235 x 2
4 नरौरा (उत्तर प्रदेश) 1991, 1992                    235 x 2
5 काकरापार (गुजरात) 1993, 1995                    235 x 2
6 कैगा (कर्नाटक) 2000, 2000                  235 x 2
7 रावतभाटा-II (राजस्थान)2000, 2000                  235 x 2
8 तारापुर (महाराष्ट्र) 2006, 2006                   500 x 2
9 कैगा (कर्नाटक)2007                             235 x 4
10 रावतभाटा-III (राजस्थान) 2008                             500 x 4
11 कुदानकुलम (तमिलनाडु) 2007, 2008                   1000 x 2
12 कलपक्कम (तमिलनाडु) 2010                             500

परमाणु शक्ति का विकास :-

  • भारत में परमाणु कार्यक्रम के शुभारम्भ कर्ता डॉ. होमी जहागीर भाभा थे।
  • 1948 में परमाणु ऊर्जा आयोग की स्थापना हुई।
  • 1954 में परमाणु ऊर्जा संस्थान ट्रॉम्बे में स्थापित किया गया।
  • जिसे 1967 में भाभा अनुसंधान केन्द्र नाम दिया गया। 1987 में भारतीय परमाणु विद्युत निगम की स्थापना की गई।
  • जिसके अधीन दस परमाणु शक्ति गृह है।
  • जिनकी कुल स्थापित विद्युत क्षमता 2770 मेगावाट है।
  • वर्तमान में देश में 17 परमाणु रियेक्टर संचालित हो रहे है जिनकी कुल विद्युत उत्पादन क्षमता 4800 मेगावाट है।

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