पोषण

पोषण

पोषण :-

पोषण विज्ञान करियर का उत्तम आहार - divya himachal

वह विशिष्ट रचनात्मक उपापचयी क्रिया जिसके अन्तर्गत पादपों में खाद्य संश्लेषण तथा स्वांगीकरण (गुण लगना) और विषमपोषी जन्तुओं में भोज्य अवयव के अन्तःग्रहण, पाचन, अवशोषण, स्वांगीकरण द्वारा प्राप्त उर्जा से शारीरिक वृद्धि, मरम्मत, ऊतकों का नवीनीकरण और जैविक क्रियाओं का संचालन होता है, सामूहिक रूप में पोषण कहलाती है। पोषण के अन्तर्गत निम्नलिखित बिन्दुओं पर विचार किया जाता है-

  1. पोषक तत्वों का सेवन,
  2. पोषक तत्वों का प्रत्येक दिन के आहार में उचित मात्रा में रहना,
  3. पोषक तत्वों की कमी से शरीर में विकृतिचिह्नों का दिखाई पड़ना।

पोषक तत्व :-

पोषक तत्व के चार्ट, नाम, प्रकार, फायदे, स्रोत - List, types, benefits and  sources of dietary nutrients in Hindi
  • पोषक तत्वों द्वारा जीवन संचालन एवं वृद्धि के लिए आवश्यक पोषण प्राप्त होता है।
  • पोषक तत्व वह पदार्थ होते हैं जो शारीरिक वृद्धि एवं चयापचय हेतु आवश्यक हैं।
  • हमारा आहार कई प्रकार के पोषक तत्वों से मिलकर बनता है।  पोषक तत्व शरीर को पोषित करते हैं।भोजन में विभिन्‍न पोषक तत्व पाए, जाते हैं।
  • पोषक तत्व जैसे प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, विटामिन, खनिज लवण, जल वह रासायनिकयौगिक एवं तत्व होते हैं जो कार्बन, हाइड्रोजन, नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, सल्फर, कैल्शियम, मैग्नीशियम आदि तत्वों द्वारा निर्मित होते हैं।

हमारे आहार से हमें मुख्य रूप से छ: प्रकार के पोषक तत्व पाए जाते हैं, जो निम्न हैं;

  1. प्रोटीन
  2. कार्बोहाइड्रेट
  3. वसा
  4. विटामिन
  5. खनिज लवण
  6. जल

प्रोटीन :-

प्रोटीन एक जटिल भूयाति युक्त कार्बनिक पदार्थ है जिसका गठन कार्बन, हाइड्रोजन, आक्सीजन एवं नाइट्रोजन तत्वों के अणुओं से मिलकर होता है। कुछ प्रोटीन में इन तत्वों के अतिरिक्त आंशिक रूप से गंधक, जस्ता, ताँबा तथा फास्फोरस भी उपस्थित होता है। ये जीवद्रव्य (प्रोटोप्लाज्म) के मुख्य अवयव हैं एवं शारीरिक वृद्धि तथा विभिन्न जैविक क्रियाओं के लिए आवश्यक हैं।

रासायनिक गठन के अनुसार प्रोटीन को सरल प्रोटीन, संयुक्त प्रोटीन तथा व्युत्पन्न प्रोटीन नामक तीन श्रेणियों में बांटा गया है।

सरल प्रोटीन :- इनका गठन केवल अमीनो अम्ल (Amino acids) द्वारा होता है।

संयुक्त प्रोटीन :- इनके गठन में अमीनो अम्ल के साथ कुछ अन्य पदार्थों के अणु भी संयुक्त रहते हैं।

व्युत्पन्न प्रोटीन :- वे प्रोटीन जो सरल या संयुक्त प्रोटीन के विघटन से प्राप्त होते हैं।

प्रोटीन के मुख्य स्त्रोत:

शाकाहारी स्त्रोत:- चना, मटर, मूंग दाल, मसूर दाल, उड़द दाल, सोयाबीन, राजमा, लोभिया, गेहूँ, मक्का, अरहर दाल, काजू, बादाम,कद्दू के बीज, सीसम, दूध

शाकाहारी प्रोटीन | भारतीय खाने में प्रोटीन | प्रोटीन से भरपूर भोजन

प्रोटीन के मांसाहारी मुख्य स्त्रोत:-  मांस, मछली, अंडा, यकृत प्रोटीन

प्रोटीन खाद्य पदार्थों में बड़ी संख्या में मिलता है, जैसे: अंडा, मीट, मछली, सोयाबीन, दूध तथा दूध से बने उत्पाद आदि। पौधों से मिलने वाले खाद्य पदार्थों में सोयाबीन में सबसे अधिक मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है। इसमें 40 प्रतिशत से अधिक प्रोटीन होता है। 16 से 18 वर्ष के आयु वर्ग वाले लड़के, जिनका वजन 57 किलोग्राम है, उनके लिए प्रतिदिन 78 ग्राम प्रोटीन की आवश्यकता होती है।

आवश्यक प्रोटीन और उनके कार्य:

शारीरिक प्रोटीनकार्य
 एंजाइमजैव उतप्रेरक, जैव रासायनिक अभिक्रियाओं में सहायक।
हार्मोन्सशरीर की क्रियाओं का नियमन करते हैं।
 परिवहन प्रोटीनहीमोग्लोबिन, विभिन्न पदार्थों का परिवहन करती हैं।
 संरचनात्मक प्रोटीनकोशिका एवं ऊतक निर्माण करती है।
 रक्षात्मक प्रोटीनसंक्रमण में रक्षा करने में सहायक है।
 संकुचन प्रोटीनये पेशी संकुचन एवं चलन हेतु उत्तरदाई है, उदाहरण-मायोसीन, एक्टिन आदि।

मुख्य खाद्य पदार्थ और प्रोटीन की मात्रा: –

भोज्य पदार्थप्रोटीन की मात्रा
सोयाबीन43.2
बंगाल चना, काला चना, हरा चना, मसूर, और लाल चना22
मूंगफली, काजू, बदाम23
मछली20
मांस22
दूध (गाय )3.2
अंडा13.3(प्रति अंडा)
भैंस4.3

प्रोटीन के लाभ :-

  • शरीर की कार्यप्रणाली को दुरूस्त रखता है।
  • भूख को नियंत्रित रखता है।
  • तनाव को कम करता है।
  • मांसपेशियां मजबूत होती हैं।
  • ऊतकों की मरम्मत होती है।
  • वजन कम करने में सहायक।
  • रोग प्रतिरोधक क्षमता शक्तिशाली होती है।
  • बालों और त्वचा को स्वस्थ और चमकदार बनाता है।
  • हड्डियों, स्नायु (Ligaments) और दूसरे संयोजी ऊतकों को स्वस्थ रखने में सहायक।
  • प्रोटीन से बाल, नाखुन, त्वचा, मांसपेशी, हड्डी और रक्तकोशिका बनती हैं।
  • शरीर में पाए जाने वाले रसायनों, जैसे कि हार्मोन (Hormones), न्यूरोट्रांसमीटर (Neurotransmitter) और एंजाइम (Enzyme) में भी प्रोटीन है।

प्रोटीन की कमी से होने वाले रोग (नुकसान):-

  • किडनी से संबंधित रोग।
  • मूत्र में पीएच बैलेंस का बिगड़ना।
  • किडनी की पथरी का खतरा।
  • कुल कैलोरी का 30 प्रतिशत से अधिक सेवन नुकसानदायक।
  • शरीर में कीटोन की मात्रा बढ़ जाती है जो कि एक विषैला पदार्थ है।
  • अत्यधिक प्रोटीन से शरीर में कोलेस्ट्रॉल का स्तर बढ़ जाता है, जिससे हृदय रोग, स्ट्रोक और कैंसर हो सकता है।
  • प्रोटीन की मात्रा बढ़ने से कार्बोहाइड्रेट का सेवन कम हो जाता है जिससे शरीर को फाइबर कम मिलता है।
  • प्रोटीन के मेटाबॉलिज्म से निकलने वाले व्यर्थ पदार्थों को शरीर से बाहर निकालने में शरीर को परेशानी होती है।

प्रोटीन से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य:-

  • प्रोटीन हमारे शरीर की हर एक कोशिका में मौजूद होता है। प्रोटीन के बिना जीवन का अस्तित्व नहीं होता।
  • शोध के अनुसार, प्रोटीन सबसे अधिक तृप्त करने वाला मैक्रो (macro) है, जो यह समझाने में मदद करता है कि क्यों उच्च प्रोटीन आहार वजन घटाने और वजन घटाने के रखरखाव को बढ़ावा देने में मदद करते हैं।
  • प्रोटीन 22 अमीनो एसिड से बना होता है, जिनमें से नौ आवश्यक होते हैं, जिसका अर्थ है कि हमें उन्हें भोजन के माध्यम से प्राप्त करना होगा क्योंकि हमारा शरीर उनका उत्पादन नहीं कर सकता है।
  • प्रोटीन का प्रत्येक 4 ग्राम कैलोरी प्रदान करता है।
  • आपको हर दिन प्रोटीन खाना है। शरीर प्रोटीन का भंडारण नहीं कर सकता जैसे वह कार्बोहाइड्रेट (carbohydrates) और वसा (fat) कर सकता है।
  • शरीर में एक प्रोटीन का जीवनकाल दो दिन का होता है।
  • हमारे शरीर के वजन का लगभग पांचवां हिस्सा प्रोटीन होता है।
  • चलते-फिरते या जिम के बाद, भोजन के बीच में, नाश्ते के रूप में, या सोने से ठीक पहले – प्रोटीन शेक आपके प्रोटीन सेवन को दैनिक रूप से पूरा करने का एक सुपर सुविधाजनक तरीका है।
  • आप प्रोटीन पाउडर के साथ मफिन (muffins), पैनकेक (pancakes), और स्मूदी (smoothies)से पका सकते हैं।
  • मॉडर्न सोर्स प्लांट-बेस्ड प्रोटीन (Modern Source Plant-Based Protein) में ऑर्गेनिक राइस प्रोटीन आइसोलेट, मटर प्रोटीन आइसोलेट, पोटैटो प्रोटीन और क्रैनबेरी प्रोटीन का विशिष्ट अनुपात में एक अनूठा मिश्रण होता है, जो इसे एक मजबूत अमीनो एसिड प्रोफाइल देने में मदद करता है जो शाकाहारी हैं और व्यायाम करना पसंद करते हैं।
  • येलोफिन टूना (Yellowfin Tuna) में सभी मछलियों की तुलना में सबसे अधिक प्रोटीन (30 ग्राम प्रति 100 ग्राम) होता है। इसके बाद एंकोवी- anchovies (29 ग्राम), सैल्मन- salmon (27 ग्राम), हलिबूट- halibut (27 ग्राम), स्नैपर- snapper (26 ग्राम), और तिलापिया- tilapia (26 ग्राम) आते हैं।

कार्बोहाइड्रेट :-

कार्बन, हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन से बने यौगिकों को कार्बोहाइड्रेट (carbohydrate in Hindi) कहते हैं।

कार्बोहाइड्रेट मुख्यतः पौधों द्वारा प्राप्त किया जाता है। इन का सामान्य सूत्र Cx(H2O)y होता है। जहां x और y पूर्णांक हैं जिनका मान समान अथवा भिन्न हो सकता है। कार्बोहाइड्रेट सभी जीवों में पाए जाते हैं।

उदाहरण – ग्लूकोज, फ्रेटोस, स्टार्च, सुक्रोज आदि प्रकृति में पाए जाने वाले कार्बोहाइड्रेट हैं।

कार्बोहाइड्रेट का वर्गीकरण :-

कार्बोहाइड्रेट को रासायनिक गुणों के आधार पर अर्थात् जल अपघटन में व्यवहार के आधार पर निम्न तीन वर्गों में वर्गीकृत किया गया है।

  1. मोनोसैकेराइड
  2. ओलिगोसैकेराइड
  3. पॉलिसैकेराइड

मोनोसैकेराइड :-

वह यौगिक जो जल अपघटन द्वारा पुनः कार्बोहाइड्रेट में अपघटित नहीं होते हैं उन्हें मोनोसैकेराइड कहते हैं। इन्हें सरल यौगिकों में जल अपघटित नहीं किया जा सकता है। इनका सामान्य सूत्र (CH2O)n होता है जहां n = 3-7 है।

ग्लूकोज, फ्रक्टोस , गेलेक्टोस आदि मोनोसैकेराइड के सामान्य उदाहरण हैं।

ओलिगोसैकेराइड

वे कार्बोहाइड्रेट जो जल अपघटन पर 2 से 10 तक मोनोसैकेराइड उत्पन्न करते हैं। उन्हें ओलिगोसैकेराइड कहा जाता है। जल अपघटन द्वारा प्राप्त मोनोसैकेराइड की संख्या के आधार पर ओलिगोसैकेराइड को निम्न श्रेणियों में बांटा गया है।

  • डाई सैकेराइड
    • ट्राई सैकेराइड
    • टेट्रा सैकेराइड

डाई सैकेराइड :-

वे कार्बोहाइड्रेट जो जल अपघटन पर दो मोनोसैकेराइड इकाइयों का निर्माण करते हैं। डाई सैकेराइड कहलाते हैं। इससे प्राप्त मोनोसैकेराइड समान अथवा भिन्न प्रकार के हो सकते हैं। जैसे सुक्रोज (C12H22O11) , माल्टोज (C12H22O11) तथा लेक्टोज (C12H22O11) आदि।

ट्राई सैकेराइड :-

वे कार्बोहाइड्रेट जो जल अपघटन पर तीन मोनोसैकेराइड इकाइयों का निर्माण करते हैं। ट्राई सैकेराइड कहलाते हैं। इससे प्राप्त मोनोसैकेराइड समान अथवा भिन्न प्रकार के हो सकते हैं। जैसे – रेफिनोज ट्राई सैकेराइड का उदाहरण है।

टेट्रा सैकेराइड :-

वे कार्बोहाइड्रेट जो जल अपघटन पर चार मोनोसैकेराइड इकाइयों का निर्माण करते हैं। टेट्रा सैकेराइड कहलाते हैं। इससे प्राप्त मोनोसैकेराइड समान अथवा भिन्न प्रकार के हो सकते हैं। जैसे – स्टैकाईरोस टेट्रा सैकेराइड का सामान्य उदाहरण है।

पॉलिसैकेराइड :-

वे कार्बोहाइड्रेट जो जल अपघटन पर अत्यधिक संख्या में मोनोसैकेराइड का निर्माण करते हैं पॉलिसैकेराइड कहलाते हैं। पॉलिसैकेराइड स्वाद में मीठे नहीं होते हैं। तथा यह जल में अविलेय होते हैं।

उदाहरण – स्टार्च, सैलूलोज, ग्लाइकोजन आदि पॉलिसैकेराइड के सामान्य उदाहरण हैं।

कार्बोहाइड्रेट के स्रोत और प्रकार | Daily Health Tip | 31 March 2020 | AAYU  App Healthcare Blog In Hindi |

कार्बोहाइड्रेट के कार्य :-

  • कार्बोहाइड्रेट पौधों में कोशिका भित्ति का निर्माण करते हैं।
  • यह वनस्पति में स्टार्च एवं जंतुओं में ग्लाइकोजन के रूप में खाद्य पदार्थों की भांति कार्य करते हैं।
  • कार्बोहाइड्रेट को देह ईंधन कहते हैं चूंकि यह जंतु एवं मानव में जीवन के लिए आवश्यक होते हैं।

वसा :-

वसा एक ऐसा पदार्थ हैं। जो शरीर को स्वस्थ रखने में मदद करता हैं। वसा शरीर की ऊर्जा को इक्ठ्ठा करने का तरीका हैं।

वसा ऊर्जा का मुख्य स्रोत हैं।

वसा शरीर को क्रियाशील बनाये रखने में मदद करती हैं। वसा शरीर के लिए बहुत ही उपयोगी हैं लेकिन इसकी ज्यादा मात्रा होने पर ये नुकसानदायक हो सकता हैं। ये पेड़-पौधों और मांस से भी प्राप्त होता हैं।

एक स्वस्थ इंसान को कम से कम 100 ग्राम वसा का प्रयोग करना आवश्यक होता हैं तथा वसा को पचाने में बहुत समय लगता हैं। यह शरीर मे प्रोटीन को कम करने के लिए आवश्यक होता हैं।

वसा या लिपिड (पृष्ठ के अंत में वीडियो देखें) — Vikaspedia

वसा के प्रकार :-

  1. संतृप्त वसा
  2. असंतृप्त वसा

संतृप्त वसा :-

संतृप्त वसा कोलेस्ट्रॉल का स्तर बढ़ाते हैं। तथा इस वसा में फैटी एसिड का एकल बंध होता हैं। संतृप्त वसाओं में हाइड्रोजन का कार्बन के साथ सबसे ज्यादा मात्रा में बंध होते हैं। जिसके कारण ताप कम होने पर यह ठोस अवस्था प्राप्त कर लेते है ।

संतृप्त वसा के स्त्रोत

  1. मछली
  2. अंडे का पीला वाला भाग
  3. दूध
  4. दही
  5. घी

असंतृप्त वसा :-

असंतृप्त वसा हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत ही लाभकारी हैं। ये हमारे शरीर मे होने वाले रोगों से बचाने में मदद करता हैं तथा ये कोलेस्ट्रॉल को कम करता हैं। यह वसा हमेशा द्रव अवस्था में रहता है ।

असंतृप्त वसा के स्त्रोत

  1. सरसों का तेल
  2. काजू
  3. बादाम
  4. मुंगफली
  5. अनार

वसा के कार्य :-

    प्रोटीन की बचत :- भोजन में वसा की कमी होने पर ऊर्जा की आवश्यकता कार्बोज के द्वारा पूरी नही हो पाती हैं एवं प्रोटीन को अपना निर्माण कार्य छोड़ कर ऊर्जा की आवश्यकता वसा कार्बोज से पूरी हो जाती हैं |

    बॉडी टेम्प्रेचर :- हमारे शरीर मे त्वचा के नीचे वसा की एक परत पाई जाती हैं। जो हमारे शरीर के टेम्प्रेचर को एक सामान्य बनाये रखती हैं ये वसा हमारे टेम्प्रेचर को सर्दी और गर्मी में बॉडी के टेम्प्रेचर को सामान्य बनाये रखता हैं इसे बॉडी टेम्प्रेचर कहते हैं।

    भूख देर से लगना :- शरीर मे वसा कम होने के कारण पाचन क्रिया कम या देर से होती हैं जिससे भोजन शरीर में ज्यादा समय तक रहता हैं और तला हुआ भोजन अधिक समय तक रहता हैं जिससे भूख जल्दी नही लगती हैं।

    भोजन का भार :- वसा से भोजन का भार कम हो जाता हैं।

    नर्म अंगो का बचाव :- हमारे शरीर मे बहुत से नर्म यानी कोमल अंग पाये जाते हैं। जैसे :- ह्रदय, तंत्रिका तंत्र, गुर्दे, आदि हैं वसा इन सब अंगों को बाहरी धक्कों से बचाते हैं।

वसा की अधिकता से होने वाले रोग :-

    ह्रदय रोग :- संतृप्त वसा यदि शरीर मे ज्यादा होने लगे तो रक्त में कोलेस्ट्रोल की मात्रा बढ़ने लगती हैं ये कोलेस्ट्रॉल रक्त में धमनियों के अंदर जमने लगता हैं जिससे धमनिया धीरे-धीरे बंद होने लगती हैं।

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विटामिन :-

Vitamin A health Benefits and Risk | क्या होते हैं विटामिन , विटामिन "A" के  फायदे व कमी से होने वाला नुकसान | Patrika News

भोज्य पदार्थों में पाए जाने वाले जटिल कार्बनिक पदार्थ जो शरीर की वृद्धि तथा पोषण करते हैं एवं इनकी कमी से विशेष रोग हो जाते हैं। विटामिन कहलाते हैं। विटामिन जीवन के लिए आवश्यक होते हैं। हमारे शरीर में इनका संश्लेषण नहीं होता है हम इन्हें भोज्य पदार्थों द्वारा प्राप्त करते हैं।

विटामिन के प्रकार :-

  1. वसा में विलेय विटामिन
  2. जल में विलेय विटामिन

वसा में विलेय विटामिन :-

यह विटामिन वसा तथा तेल में विलेय होते हैं एवं इस वर्ग के विटामिन जल में अविलेय होते हैं।

उदाहरण – विटामिन A, विटामिन D, विटामिन E तथा विटामिन K इस वर्ग के विटामिन हैं।

जल में विलेय विटामिन :-

यह विटामिन जल में विलेय होते हैं एवं इस वर्ग के विटामिन वसा तथा तेल में अविलेय होते हैं।

उदाहरण – विटामिन B कॉम्पलेक्स तथा विटामिन C इस वर्ग के विटामिन हैं।

विटामिन A :-

विटामिन A का रासायनिक नाम रेटिनॉल होता है। यह वसा तथा तेल में विलेय विटामिन है इसका अणुसूत्र C20H30O होता है।

विटामिन A के स्रोत – दूध, मक्खन, गाजर, हरी सब्जियां, दालें, मछली के यकृत का तेल, अंडा आदि।

Vitamin A Rich Vegan Food Diet Retinol Deficiency Disease Carrot Sweet  Potato Tomato Pea Fish Egg | Vitamin A Vegan Foods: बिना नॉनवेज खाए भी मिल  सकता है विटामिन ए, आंखों की

कमी से उत्पन्न रोग – रतौंधी, त्वचा का शुष्क हो जाना, जिरोप्थैलमिया (कार्निया का धुंधलापन)

रतौंधी के लक्षण और घरेलू उपचारI Night Blindedness:Symptoms & Remedies

लक्षण – कम प्रकाश में दिखाई न देना, धब्बे दिखना, आंखों से लिसलिसा पदार्थ का निकलना।

विटामिन B :-

विटामिन B के प्रकार :-

विटामिन B1 :-

विटामिन B1 का रासायनिक नाम थायमीन होता है। यह दालें, अनाज, हरी सब्जियां, दूध, अंडा तथा सोयाबीन में पाया जाता है। इसकी कमी से बेरी-बेरी रोग हो जाता है।

Vitamin B1 | What Is Thiamine, What Are The Benefits To The Body, Know Here  In Detail - Thiamine क्या है, इससे शरीर को क्या-क्या लाभ होता है, यहां  जानिए डिटेल में |

विटामिन B2 :-

विटामिन B2 का रसायनिक नाम राइबोफ्लेविन होता है। यह जल में विलेय तथा वसा व तेल में अविलेय होता है।

यह मांस, मटर, यकृत, दूध, अंडा तथा सब्जियों में पाया जाता है। इसकी कमी से किलोसिस (होंठों व मुंह के किनारों का फटना) रोग हो जाता है।

विटामिन B3  :-

विटामिन B3 का रसायनिक नाम नियासिन हैं। ये कार्बोहाइड्रेट, फैट और अल्कोहल को ऊर्जा में बदलने में मदद करता है। यह त्वचा के स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद करता है और तंत्रिका और पाचन तंत्र को स्वस्थ रखने में जरूर भूमिका निभाता है। नियासिन की कमी (पेलाग्रा) हो सकता है।

Vitamin B5 :-

विटामिन B5 का रासायनिक नाम  पैंटोथेनिक एसिड कहते हैं। ये पैंटोथेनिक एसिड कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, फैट और अल्कोहल के चयापचय के साथ-साथ लाल रक्त कोशिकाओं और स्टेरॉयड हार्मोन का उत्पादन करने के लिए जरूरी है। विटामिन B5 की कमी से अनिद्रा, सिरदर्द और चिड़चिड़े व्यवहार का अनुभव होता है।

विटामिन B6  :-

विटामिन B6 का रसायनिक नाम पाइरिडॉक्सिन होता है। यह जल में विलेय तथा वसा व तेल में अविलेय होता है।

यह खमीर, दूध, अंडा, बंदगोभी आदि में पाया जाता है। इसकी कमी से दुर्बलता, नींद न आना, तंत्रिका तंत्र में अनियमितता आदि रोग उत्पन्न हो जाते हैं।

विटामिन B– 7 :-

  • रासायनिक नाम: बायोटिन
  • स्रोत: अंडे की जर्दी, सब्जियां।
  • फायदे: यह त्वचा और बालो के लिए बहुत ही अच्छा है।
  • इसकी कमी से हमे जिल्द की सूजन हो सकती है।

विटामिन B– 9

  • रासायनिक नाम: फोलिक एसिड
  • स्रोत: पत्तीदार शाक भाजी, सूरजमुखी के बीज, कुछ फलो में भी यह होता है।
  • फायदे: यह त्वचा के लोग और गठिया के उपचार हेतु बहुत ही शक्तिशाली है।
  • गर्भवती महिलाओं को यह लेने ही सलाह दी जाती है।

विटामिन B12

विटामिन B12 का रसायनिक नाम साइनोकोबालऐमीन होता है। यह जल में विलेय होता है परंतु वसा व तेल में अविलेय है।

यह यकृत, पनीर, दूध, मांस, मछली, अंडा में पाया जाता है। इसकी कमी से पर्निसियस एनीमिया नामक रोग हो जाता है।

विटामिन C :-

विटामिन C का रासायनिक नाम एस्कोर्बिक अम्ल होता है। इसका अणु सूत्र C6H8O6 होता है। यह जल में विलेय परंतु वसा एवं तेल में अविलेय विटामिन है।

विटामिन C के स्रोत – आंवला, नींबू, संतरा, टमाटर, अनन्नास आदि रसीले फल, हरी पत्तेदार सब्जियां आदि।

Vitamin C Health Benefits Natural Food Source Fruits And Vegetables Vitamin  C Deficiency Symptoms | Vitamin C : शरीर में विटामिन सी के फायदे, नुकसान,  जानिए विटामिन सी से भरपूर प्राकृतिक स्रोत

कमी से उत्पन्न रोग – स्कर्वी (मसूड़ों से रक्त का बहना)

लक्षण – हड्डियों का कमजोर होना, घाव का देरी से भरना, मसूड़ों से खून आना आदि।

विटामिन D :-

विटामिन D का रासायनिक नाम कैल्सिफेरॉल होता है। यह वसा एवं तेल में विलेय होता है परंतु जल में अविलेय होता है।

विटामिन D के स्रोत – सूर्य के प्रकाश से विटामिन D का निर्माण त्वचा द्वारा होता है, दूध, मछली के यकृत का तेल, मक्खन, अंडा तथा मांस आदि।

विटामिन डी और डी3 में क्या अंतर है? - Quora

कमी से उत्पन्न रोग रिकेट्स अस्थिरोग (बच्चों में), वयस्कों में ओस्टियो मैलेशिया आदि।

लक्षण दांतों में विकृति, जोड़ों में सूजन आदि।

विटामिन E :-

विटामिन E का रासायनिक नाम टेकोफेरॉल्स होता है। यह वसा तथा तेल में विलेय एवं जल में अविलेय होता है। विटामिन E के स्रोत – वनस्पति तेल, दूध, सूरजमुखी का तेल, अंडा, मछली आदि।

Best Vitamin E Sources: Include These 7 Foods In Your Diet To Overcome Vitamin  E Deficiency - Vitamin-E Rich Food: विटामिन ई की कमी को दूर करने के लिए  डाइट में शामिल

कमी से उत्पन्न रोग प्रजनन क्षमता को ह्यस, मांसपेशियों में कमजोरी

लक्षण जंतुओं में पेशी ताकतों का क्षय होना।

विटामिन K :-

विटामिन K का रासायनिक नाम फाइलोक्विनोन होता है। यह वसा व तेल में विलेय होता है तथा जल में अविलेय होता है।

विटामिन K के स्रोत – हरे पत्ते वाली सब्जियां, सोयाबीन, गोभी आदि।

Vitamin k is very important to keep the body healthy, these sources will be  supplied | Vitamin K :- शरीर को स्वस्थ रखने के लिए बहुत जरूरी है विटामिन K,  इन स्रोतों

कमी से उत्पन्न रोग – रक्त स्कंदन (रक्त का थक्का जमने में अधिक समय लगना)

लक्षण रक्त का थक्का जमने में अधिक समय लगना, शिशुओं में मस्तिष्क रक्त स्राव का न रुकना।

खनिज लवण :-

खनिज लवण शरीर में वृद्धि व निर्माण में सहायक होता है। वनस्पति तथा जन्तु ऊतकों को जलाने पर जो भस्म अवशेष रहती है, वह वास्तव में खनिज ही है। हमारे शरीर के भार का 4 प्रतिशत भाग खनिज तत्व से ही बना है। हमारे शरीर में विभिन्न खनिज लवण होते हैं। ये सभी तत्व भोजन द्वारा शरीर में पहुँचते रहने चाहिए।

1. कैल्शियम :-

शरीर में कैल्शियम की मात्रा अन्य लवणों से अधिक होती है। 99 प्रतिशत शारीरिक कैल्शियम अस्थि संस्थान में एवं 1 प्रतिशत कोमल तंतुओं में तथा तरल पदार्थों में पाया जाता है।

कैल्शियम के कार्य  :-

  • विभिन्न प्रकार के लवणों के साथ मिलकर यह अस्थि एवं दाँतों को सख्त एवं स्थिर बनाते हैं जिससे पूरे शरीर के आधार के रूप में काम कर सकें।
  • कैल्शियम रक्त जमाने में सहायक होता है। कैल्शियम की अनुपस्थिति में रक्त जमने की प्रक्रिया नहीं हो पाती और शरीर से रक्त बह सकता है। कैल्शियम तथा विटामिन ‘के’ मिलकर एक बारीक जाल (fibrin) का निर्माण करती है जिसमें लाल रक्त कणिकाएं फंस कर थक्के के रूप में जम जाते हैं।
  • यदि कैल्शियम कम होता है तो शरीर में प्रोटीन की मात्रा भी कम हो जाती है जिससे शरीर की सामान्य वृद्धि पर प्रभाव पड़ता है।
  • कैल्शियम मांसपेशियों के फैलने, सिकुड़ने की क्रिया को नियंत्रित कर मांसपेशियों को क्रियाशील बनाये रखता है। हृदय के संकुचन को भी नियंत्रित करता है।

भोजन में कैल्शियम स्रोत :-

    ताजा दूध, मक्खन निकला, पाउडर या सूखा दूध तथा मठ्ठा आदि कैल्शियम प्राप्ति के प्रमुख हैं। कैल्शियम के अन्य साधन हरे पत्ते वाली सब्जियाँ- पत्ता गोभी, मेथी, पालक, हरी सरसों, दाल, सूखे मेवे आदि हैं। माँस तथा अनाजों में इसकी मात्रा बहुत कम होती है।

कैल्शियम  कमी से होने वाले रोग  :-

   रिकेट्स: –  इस रोग में बच्चे की शरीर की वृद्धि रुक जाती है, टांगों की हड्डियां टेड़ी हो जाती हैं (Bow legs), एड़ी एवं कलाई चौड़ी हो जाती हैं, तथा छाती की हड्डियों के सिरे मोटे हो जाते हैं (Pigeon chest ) व जल्दी टूटने वाली हो जाती हैं। माथे की हड्डी अधिक उभरी हुई दिखाई देती है जिसे ‘फ्रन्टल बॉसिंग’ (Frontal bossing) कहते हैं। चलने पर घुटने टकराते हैं जिसे ‘नॉक नी’ (Knock knee) कहा जाता है।

आस्टियोमलेशिया :-  प्रौढ़ावस्था में कैल्शियम की कमी से अस्थियां दुर्बल हो जाती हैं। आहार में कैल्शियम की लगातार कमी रहने से मेखला (pelvic gurdle) संकुचित हो जाती है। ऐसी स्त्रियों के गर्भवती होने पर शिशु का जन्म कठिनता से होता है। कभी कभी गर्भपात हो जाता है . 

2. फास्फोरस :-

कैल्शियम के बाद खनिज तत्वों में फासफोरस की मात्रा अधिकतम होती है। शरीर के विभिन्न अंगों के निर्माण करने वाले तंतुओं (अस्थियां, मांसपेशियाँ तथा स्नायु संस्थान) में फास्फोरस पाया जाता है .

कार्य :-

  1. फास्फोरस अस्थियों एवं दांतों के निर्माण में सहायक होता है।
  2. कैल्शियम के अवशोषण को बढ़ाता है।
  3. रक्त में अम्ल क्षार सन्तुलन बनाये रखता है।
  4. मांसपेशियों में संकुचन के लिये फास्फोरस महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

लौह अयस्क :-

लौह अयस्क की उपस्थिति हमारे शरीर के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।

कार्य :-

  • हीमोग्लोबिन रक्त का एक आवश्यक अवयव है जो लौह लवण व प्रोटीन के साथ मिलकर बनाता है।
  • लौह लवण हीमोग्लोबिन का निर्माण करता है। हीमोग्लोबिन का मुख्य कार्य ऑक्सीजन और कार्बनडाई ऑक्साइड का आदान-प्रदान करना है।
  • यह मांसपेशियों में संकुचन में अत्यन्त उपयोगी है।
  • यह प्रतिरक्षी कोशिकाओं का निर्माण करता है।

कमी :-

शरीर में लौह लवण की कमी से रक्त में हीमोग्लोबिन का निर्माण ठीक तरह से नहीं हो पाता है। अतः रक्त में हीमोग्लोबिन की मात्रा कम हो जाती है फलस्वरुप एनीमिया रोग हो जाता है।

सोडियम :-

सोडियम शरीर की समस्त बाह्य कोशिकीय द्रवों और प्लाजमा में उपस्थित रहता है। इस खनिज लवण की पूर्ति आहार में यौगिक के रूप में सोडियम क्लोराइड (साधारण नमक) द्वारा की जाती है।

कार्य  :-

  • सोडियम शरीर में अम्ल व क्षारीय स्थिति में संतुलन बनाये रखने में सहायक होता है।
  • हृदय की मांसपेशियों व नाड़ी ऊतकों की संवेदन शक्ति को नियमित रखता है।
  • शरीर में पानी के संतुलन को ठीक रखना – मल, मूत्र, पसीने के रूप पानी का निष्कासन सोडियम पर भी निर्भर करता है।

पोटेशियम :-

    पोटेशियम खनिज लवण की उपस्थिति कोशिकीय द्रवों, लाल रक्त कणिकाओं में होती है।

कार्य :-

    पोटेशियम विशेष रूप से हृदय की धड़कन की गति को नियमित रखने का कार्य करता है। मांसपेशियों का संकुचन बनाये रखने में सहायक होता है।  कुछ एन्जाइम का स्त्राव बढ़ाने में मदद करता है।

क्लोराइड :-

  • क्लोराइड की उपस्थिति कोशिकीय द्रवों व कोशिकाओं को घेरे रहने वाले द्रवों में पाया जाता है।
  • शरीर में अम्ल व क्षार की स्थिति का संतुलन बनाये रखने में सहायक होता है।
  • उचित शारीरिक वृद्धि के लिये भोजन में क्लोरीन की उपस्थिति अनिवार्य है।

मैग्नीशियम :-

यह लवण कैल्शियम के साथ मिलकर कार्य करता है। मैग्नीशियम शरीर की अस्थियों में फास्फेट के साथ उपस्थित रहता है।

मैग्नीज़ :-

यह हड्डियों तथा यकृत में उपस्थित रहता है।

कार्य :-

  • मैग्नीज़ प्रजनन क्षमता को बनाये रखने में सहायक है।
  • यह अस्थि विकास में सहायक है।
  • इसकी अत्यल्प मात्रा ही शरीर के लिये आवश्यक होती है जिसकी पूर्ति दैनिक संतुलित आहार हो जाती है।

सल्फर :-

सल्फर प्रोटीन के साथ संयुक्त रूप में रहता है। सल्फर को गन्धक भी कहते हैं।

कार्य :-

  • प्रोटीन के पाचन, अवशोषण में सहायक होता है।
  • बाल, नाखून, त्वचा की चमक के लिये आवश्यक होता है।

तांबा :-

शरीर में समस्त ऊतकों में तांबे की अल्प मात्रा उपस्थित होता है।

आयोडीन :-

यह एक अल्पमात्रीय खनिज लवण है जो शरीर में अत्यन्त आवश्यक होता है। यह हमारे शरीर की थायरॉइड ग्रन्थी के थायरॉक्सीन का अवयव है।

कमी :- घेंघारोग  (Goiter): आयोडीन की न्यूनता से थायराइड ग्रन्थि का आकार बढ़ जाता है जो गले में सूजन के रूप में दिखाई देता है। साधारण स्थिति में घेंघा में दर्द नहीं होता। यदि ग्रन्थि ज्यादा बढ़ जाये तो श्वास नली पर दबाव पड़ सकता है जिससे श्वसन अवरोध उत्पन्न होता है।

क्रेटिनिज्म :-  गर्भवस्था में महिलाओं द्वारा अपने आहार में आयोडीन की पर्याप्त मात्रा न लेने से प्रायः शिशुओं में यह रोग हो जाता है। इसमें बच्चे की शारीरिक व मानसिक रूप से वृद्धि रूक जाती है तथा वह असंतुलित व अपरिपक्व या अविकसित रहता है।

फ्लोरीन :-  यद्यपि यह खनिज लवण काफी कम मात्रा में आवश्यक होता है परन्तु दांतो के स्वास्थ्य में यह महत्वपूर्ण है।

  • जिंक :-  इसे जस्ता कहते हैं। यह हमारे शरीर में दांतों व हड्डियों में पाया जाता है।
  • इन्सुलिन हार्मोन का निर्माण करने में सहायक होता है।
  • शरीर के कई एन्जाइम का निर्माण करता है।
  • बालों के स्वास्थ के लिये आवश्यक होता है।

इसके अलावा कुछ अन्य खनिज लवण भी हमारे शरीर में अत्यल्प मात्रा में पाये जाते हैं-

  • आर्सेनिक (Arsenic)
  • ब्रोमीन (Bromine )
  • निकिल (Nickel)
  • क्रोमियम (Chromium)
  • कैडमियम (Cadmium)
  • सिलिकन (Silicon)
  • मॉलिबिडिनम (Molybdenum)
  • कोबाल्ट (Cobalt)

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