प्रदूषण प्राकृतिक आपदाएँ एवं प्रबंधन

प्रदूषण प्राकृतिक आपदाएँ एवं प्रबंधन

प्रदूषण प्राकृतिक आपदाएँ एवं प्रबंधन

प्रदूषण :-

‘‘पर्यावरण प्रदूषण एक ऐसी परिस्थिति है जिसमें जैविक पदार्थों एवं मानव का जीवन दुर्लभ हो जाये।

पर्यावरण के प्रदूषण के लिए बहुत हद तक मानव स्वयं जिम्मेदार है।‘‘

प्रदूषक :-

प्रदूषण के कारक तत्वो को प्रदूषक कहते है ।

प्रदूषण के प्रकार :-

मृदा प्रदूषण :-

मृदा प्रदूषण - विकिपीडिया

मृदा की गुणवत्ता में प्राकृतिक एवं मानवीय कारणों से कमी आने को मृदा प्रदूषण कहा जाता है।

पृथ्वी की ऊपरी सतह पर फैला संसाधन मृदा है

जिसमें जैविक एवं अजैविक पदार्थों का मिश्रण पाया जाता है।

मृदा की उर्वरता के ह्यस के निम्न कारण हैं-

1-भौतिक प्रक्रिया :-

  मृदा अपरदन, उसकी उर्वरता कम होने का एक प्रमुख कारण कहा जाता है।

मृदा अपरदन की मात्रा एवं विस्तार, बहत हद तक वर्षा की मात्रा, तापमान, भूमि की ढ़लान, वायु की गति तथा प्राकृतिक वनस्पति पर निर्भर करता है।

जंगलों को काटने से मृदा अपरदन की मात्रा में वृद्धि हो जाती है।

2- जैविक प्रक्रिया :-

    सूक्ष्म जीव दो प्रकार के होते हैं- एक तो ऐसे हैं जिनसे मृदा की उर्वरकता बढ़ती है

तथा दूसरे ऐसे जिनसे उपजाऊपन में कमी आती है। यदि मृदा में ह्यस करने वाले सूक्ष्म जैविकों की बहुतायत हो जाये तो मृदा के उपजाऊपन में कमी आ जाती है।

प्रदूषण प्राकृतिक आपदाएँ एवं प्रबंधन

3- वायु आधारित स्त्रोत :-

    धुएँ से वायुमंडल में बहुत से हानिकारक तत्व प्रवेश कर जाते हैं।

वायु से बहुत से वैषिक पदार्थ खेतों में गिरते हैं जिससे मृदा की उर्वरकता कम हो जाती है।

4-रासायनिक खाद एवं कीटाणुनाशक दवाइयों का प्रयोग :-

    कृषि की फसलों में रासायनिक खाद तथा कीटाणुनाशक दवाइयों का इस्तेमाल करने से बहुत से उपयोगी सुक्ष्म जीव नष्ट हो जाते हैं, जिससे मृदा के उपजाऊपन का ह्यस हो जाता है।

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5-औद्योगिक एवं नगरीय कूड़ा-करकट :-

    औद्योगिक एवं नगरीय कूड़ा-करकट के ठीक तौर पर प्रबंधन न करने से भी मृदा प्रदूषण की संभावना बढ़ जाती है।

मृदा प्रदूषण के परिणाम :-

मानव जीवन के टिकाऊ विकास के लिए मृदा का स्वस्थ्य अवस्था में रहना अनिवार्य है।

यदि मृदा प्रदूषित हो तो उसके बहुत दूरगामी प्रतिकूल प्रभाव हो सकते हैं।

कुछ प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष प्रतिकूल  प्रभाव निम्न प्रकार हैं-

  1. कृषि क्षेत्रफल में कमी हो जाएगी।
  2. नाइट्रोजन स्थिरीकरण में कमी आएगी।
  3. लवणता में वृद्धि हो जाएगी।
  4. जैव विधिवता में कमी आएगी

    रासायनिक पदार्थ एवं कीटनाशक दवाईयाँ जिनका उपयोग फसल को उगाने में किया गया है वह आहार श्रृखंला के द्वारा मानव एवं पशु-पक्षियों के शरीर में प्रवेश कर जाता है जिसके कारण बहुत सी बीमारियाँ फैलती हैं तथा उसकी मृत्यु हो जाती है। एक अनुमान के अनुसार प्रति वर्ष लगभग सात लाख व्यक्तियों की मौत रासायनिक खाद तथा कीटाणुनाशक दवाइयों के फसलों में इस्तेमाल के कारण हो जाती है।

जल प्रदूषण :-

जल के भौतिक एवं रासायनिक स्वरूप में परिवर्तन करना ही जल प्रदूषण कहलाता है। हमारे जीवन का आधार जल है, परंतु विश्व में जल का तिवरण बहुत असमान है। विश्व के बहुत से देशों में वर्षा केवल दो-तीन महीनों तक सीमित रहती है। उदाहरण के लिए भारत के अधिकांश भाग में 80 प्रतिशत से अधिक वर्षा केवल वर्षा ऋतु के चार महीनों में रिकार्ड की जाती है। ऐसी परिस्थिति में जल संचय के लिये नदियों पर बाँध बनाकर ही साल भर जल की आपूर्ति की जा सकती है।

प्रदूषण प्राकृतिक आपदाएँ एवं प्रबंधन

Water pollution in Hindi | jal pradushan | कारण | प्रभाव | जल प्रदूषण के  नियंत्रण के उपाय | जल प्रदूषण निबंध - Knowstoday.com

जल प्रदूषण के मुख्य कारण हैं-

1-गंदे पानी एवं कीचड़ का मिश्रण :-

    गंदे पानी तथा कीचड़ ,जल प्रदूषण का मुख्य कारण है। गंदे पानी में मानव व जानवरों का मलमूत्र , खाद्य अवशेष, शोधन अभिकर्ता तथा अन्य व्यर्थ के पदार्थ होते हैं। ऐसे प्रदूषित जल से बहुत सी बीमारियाँ फैलती हैं, जिनमें हैजा, पेचित बुखार, टाइफाइड इत्यादि मुख्य हैं।

2- अजैविक पदार्थ एवं खनिज

    जल में बहुत से अम्ल तथा खनिजों के तत्व भी मिल जाने से जल प्रदूषित हो जाता है। इन पदार्थों का आहार श्रृंखला में प्रवेश करने से नाना प्रकार की बीमारियाँ उत्पन्न हो जाती हैं जिनमें दिमा की बीमारी होने की आशंका बढ़ी रहती है।

प्रदूषण प्राकृतिक आपदाएँ एवं प्रबंधन

3- नाइट्रेस

    जल प्रदूषण में नाइट्रेट भी प्रमुख कारण है। किसानों के द्वारा खेती में उपयोग होने वाला रासायनिक नाइट्रेट खाद जब पोखर, तालाब तथा नदियों में प्रवेश कर जाता है तो उससे जल प्रदूषण हो जाता है। भारत की अधिकतर झीलें तथा जलाश्य इससे प्रभावित हैं। धान के खेतों से बहकर भारी मात्रा में नाइट्रेट खाद का डल  झील में प्रवेश करता है। जिससे झीलों का जल प्रदूषित होता है।

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वायु प्रदूषण :-

यदि वायु में प्रदूषण-कणों की मात्रा अधिक हो जाये तो उसको वायु प्रदूषण कहते हैं।

वायु प्रदूषण प्राकृतिक /भौतिक कारणों से तथा मानवीय कारणों से होता है।

वायु प्रदूषण मुख्य रूप से कार्बन डाय ऑक्साइड, कार्बन एसिड़,जल,नाइट्रिक एसिड़ तथा सल्फ्युरिक एसिड़ इत्यादि के द्वारा होता है।

वायु प्रदूषण पर निबंध - Vayu Pradushan Par Nibandh

प्रमुख वायु प्रदूषक :-

ऐबेस्टॉस डस्ट-  ऐबेस्टॉस शीट के निर्माण से डस्ट का निर्माण होता हैं, इसके प्रभाव से मानव में ती्रव सांस संबंधी समस्या तथा कैंसर होने की आशंका होती है।

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कार्बन डाइ ऑक्साइड– जीवश्म ईंधनों के जलाने से इसका उत्सर्जन अत्याधिक मात्रा में होता है, इसके प्रदूषण के परिणामस्वरूप सांस लेने में तकलीफ, तेज सिर दर्द, श्लेष्मा झिल्ली में नुकसान, मूर्छा व मृत्यु हो जाती है।

कार्बन मोनो ऑक्साइड- वाहनों से निकलता धुआं, जीवश्म ईंधनों का जलना,  इसके उत्सर्जन का प्रमुख कारण है इसके प्रभाव से सांस लेने में तकलीफ तेज सिर दर्द आदि की समस्या होती हैं.

कैडमियम– उद्योग से यह प्रदूषक पदार्थ निकलता है इसके प्रभाव से हृदय पर बुरा प्रभाव पड़ता है.

क्लोरा फ्लोरो कार्बन– रिफ्रीजरेटर्स , जेट से उत्सर्जन, डिटर्जेण्ट आदि से इसका उत्सर्जन होता है। इसके प्रभाव से आजोन लेयर का क्षरण होता है एवं वैश्विक तापमान में वृद्धि हो रही है।

कोयले का चूरा– कोयले की खानने इसका प्रमुख स्त्रोत हैं। मानव स्वास्थ्य पर इससे काला कैंसर, फेफड़े का तंतुशोध जिसमें श्वसन तंत्र कार्य करना बंद कर देता है.

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ध्वनि प्रदूषण :-

यदि ध्वनि के द्वारा शोर-शराबा अत्याधिक हो और उससे बेचैनी उत्पन्न हो या स्वास्थ्य पर खराब प्रभव पड़े तो उसको ध्वनि प्रदूषण कहते हैं। जैसे-जैसे औद्योगिकरण एवं नगरीकरण बढ़ रहा है, ध्वनि प्रदूषण की समस्या भी बढ़ती जा रही है।

about noise pollution causes) ध्वनि प्रदूषण के बारे में कुछ रोचक तथ्य।

सागरीय प्रदूषण :-

पृथ्वी के धरातल का लगभग 71 प्रतिशत भाग महासागरों से युक्त है। महासागर, प्राकृतिक व मानव निर्मित पदूषकों का अंतिम स्थान हैं। नदियां, अपने प्रदूषण को समुद्र में डालती हैं। समुद्रतटीय नगरों, शहरोंएवं गांवों के गंदे पानी व कूड़ा-करकट को समुद्र में डाला जाता है।

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समुद्री प्रदूषकों में नौसंचालन के निस्सरण से निकला तेल, अपमार्जक, मलयुक्त जल, कूड़ा-करकट, रेडियोएक्टिव अपशिष्ट, अपतटीय तेल खनन, तेल पलटना तथा ज्वालामुखीय उद्भेदन आदि हैं।

यूँ तो सागरीय प्रदूषण भौतिक एवं मानवीय कारको से होतें है, परंतु वर्तमान समय में प्रदूषण का मुख्य कारण मानवीय हैं सागरों में ज्वालामुखियों के उदगार से प्रदूषण होता रहता है। मानव द्वारा सागरों  में तेल, पेट्रोलियम, रासायनिक पदार्थ पोलीबैग, कूड़ा-करकट डालने से जल प्रदूषण की समस्या उत्पन्न होती है।

प्राकृतिक आपदाएँ एवं आपदा प्रबंधन :-

प्राकृतिक आपदा :-

भौतिक भूगोल एवं भू-आकृति विज्ञान के विशेषज्ञ के लिए पर्यावरण तथा भौतिक आपदाएँ एक महत्वपूर्ण शोध का विषय है। मानव प्राचीन काल से ही प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित होता रहा है। प्राकृतिक आपदाएँ मानव के नियंत्रण के बाहर हैं। पर्यावरण आपदाओं में ज्वालामुखी भूकंप, बाढ़, सूखा, बर्फीले तूफान, सुनामी, महामारी, इत्यादि सम्मिलत हैं। इन प्राकृतिक आपदाओं के अतिरिक्त बहुत सी आपदाओं के लिए  मानव स्वयं जिम्मेदार है।

संयुक्त राष्ट्र संघ की  रिपार्ट के अनुसार विश्व की बाढ़ से प्रभावित होने वाली  जनसंख्या की 90 प्रतिशत जनसंख्या द. एशिया, दक्षिणी पूर्वी एशिया तथा एशिया-प्रशांत महासागर के देशो में रहती है। बाढ़ से प्रभावित होने वाले देशों में भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान सम्मिलत हैं। विश्व रिपोर्ट के अनुसार प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित हाने वाले देशों में चीन के पश्चात भारत का दूसरा स्थान है।

आपदाओं का प्रकार :-

1. भूगर्भीय आपदाएँ- ज्वालामुखी, भूकंप, सुनामी, भूस्खलन, हिमस्खलन भूगर्भीय आपदाओं की श्रेणी में आती हैं।

2. जलवायु आपदाएँ-  सागर का थल पर चढ़ना, जलाश्यों में खरपतवार, तूफान के कारण तटीय अपरदन, बाढ़, सूखा तथा जंगलों में आग लगना।

3. जैविक आपदाएँ– महामारी तथा जनता की स्वास्थ्य संबंधी संकट

4. प्रतिकूल तत्व– युद्ध, उग्रवाद, अतिवाद, चरमपंथीवाद तथा विद्रोह

5. मूलभूत सुविधाओं का विघटन होना

6. जनसमूह का नियंत्रण से बाहर होना

आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 :-

आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 में- आपदा से तात्पर्य किसी क्षेत्र में हुए उस विध्वंस, अनिष्ट, विपत्ति या बेहद गंभीर घटना से है जो प्राकृतिक या मानवजनित कारणों से या दुर्घटनावश या लापरवाही से घटित होती है और जिसमें बहुत बड़ी मात्रा में मानव जीवन की हानि होती है या मानव पीड़ित होता है या संपत्ति को हानि पहुंचती है या पर्यावरण का भारी क्षरण होता है। यह घटना प्रायः प्रभावित क्षेत्र के समुदाय की सामना करने की क्षमता से अधिक भयावह होती है।

भारत में आपदा को निम्न श्रेणियों में बाँटा गया है

जल एवं जलवायु से जुड़ी आपदाएँ :- चक्रवात, बवण्डर एवं तूफान, ओलावृष्टि, बादल फटना, लू व शीतलहर, हिमस्खलन, सूखा, समुद्र-क्षरण, मेघ-गर्जन व बिजली का कड़कना|

भूमि संबंधी आपदाएँ :– भूस्खलन, भूकंप, बांध का टूटना, खदान में आग

दुर्घटना संबंधी आपदाएँ:–  जंगलों में आग लगना, शहरों में आग लगना, खदानों में पानी भरना, तेल का फैलाव, प्रमुख इमारतों का ढहना, एक साथ कई बम विस्फोट, बिजली से आग लगना, हवाई, सड़क एवं रेल दुर्घटनाएँ|

जैविक आपदाएँ :- महामारियॉ, कीटों का हमला, पशुओं की महामारियॉ, जहरीला भोजन

रासायनिक आपदाएँ :- रासायनिक, औद्योगिक एवं परमाणु संबंधी आपदाएं, रासायनिक गैस का रिसाव, परमाणु बम गिरना।

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण :- कानून का अधिनियम होने तक सरकार ने 30 मई, 2005 को प्रधानमंत्री को अध्यक्ष के रूप में लेकर राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) का गठन किया।

आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 लागू होने के बाद अधिनियम के उपबंधों के अनुरूप 27 सितंबर, 2006 को एनडीएमए का गठन किया गया जिसमें 9 सदस्य हैं जिनमें से एक सदस्य को उपाध्यक्ष के रूप में पदनामित किया गया है।

आपदाओं के प्रबंधन के तीन चरण :-

  • रोकथाम के उपायों द्वारा क्षेत्र को आपदा शून्य करना
  • आपदा से निपटने की तैयार
  • आपदा पश्चात् राहत एवं बचाव तथा पुनर्वास।

इतिहास के प्रमुख आपदाएं :-

कश्मीर बाढ़ :-

Flood Again In Jammu Kashmir- एक बार फ‍िर जम्‍मू-कश्‍मीर घिरा बाढ़ से  श्रीनगर हुआ पानी-पानी मुफ्ती ने मांगी सेना की मदद
  • वर्ष: 2014
  • प्रभावित क्षेत्र: श्रीनगर, बांदीपुर, राजौरी आदि हैं।
  • मृत्यु दर: 500 से अधिक।
  • सितंबर 2014 में कश्मीर क्षेत्र में लगातार बारिश के कारण कश्मीर के लोग बड़े पैमाने पर बाढ़ से पीड़ित हुए, जिससे कारण करीब 500 लोगों की मौत हो गईं। सैकड़ों लोग भोजन और पानी के बिना ही अपने घरों में बहुत दिनों तक फंसे रहे।
  • रिपोर्टों के अनुसार जम्मू और कश्मीर में 2600 गाँव बाढ़ से प्रभावित हुए थे।
  • कश्मीर के 390 गाँव पूरी तरह से जलमग्न हो गए थे।
  • बाढ़ ने श्रीनगर के कई हिस्सों को भी जलमग्न कर दिया था।
  • बाढ़ के कारण राज्य भर के लगभग 50 पुल भी क्षतिग्रस्त हो गये थे और 5000 करोड़ से 6000 करोड़ के लगभग धन हानि भी हुई थी।

उत्तराखंड में आकास्मिक बाढ़ :-

भारी बारिश से उत्तराखंड में बाढ़ जैसे हालात, पिथौरागढ़ में बादल फटा -  uttarakhand flood landslide rain - AajTak
  • वर्ष 2013
  • प्रभावित क्षेत्र: गोविंदघाट, केदार धाम, रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, पश्चिमी नेपाल।
  • मृत्यु दर: 5000 से अधिक।
  • वर्ष 2013 में, उत्तराखंड को भारी और घातक बादलों के रूप में एक बड़ी विपत्तिपूर्ण प्राकृतिक आपदा का सामना करना पड़ा, जिससे गंगा नदी में बाढ़ आ गई।
  • अचानक, भारी बारिश उत्तराखंड में खतरनाक भूस्खलन का कारण बनी, जिसने हजारों लोगों को मार दिया और हजारों लोगों की लापता होने गए
  • मौतों की संख्या 5,700 होने का अनुमान था, 14 से 17 जून, 2013 तक 4 दिनों के लम्बे समय तक बाढ़ और भूस्खलन जारी रहा। जिसके कारण 1,00,000 से अधिक तीर्थयात्री केदारनाथ की घाटियों में फँस गये थे।
  • उत्तराखंड आकास्मिक बाढ़ भारत के इतिहास की सबसे विनाशकारी बाढ़ मानी जाती है।

हिंद महासागर सुनामी :-

Revealed: Himalaya behind 2014 tsunami that claimed 250,000 lives - India  TV Hindi
  • वर्ष: 2004
  • प्रभावित क्षेत्र: दक्षिणी भारत के हिस्सों से लेकर अंडमान निकोबार द्वीप समूह, श्रीलंका, इंडोनेशिया आदि।
  • मृत्यु : 2 लाख से अधिक
  • 2004 में एक बड़े भूकंप के बाद, हिंद महासागर में एक विशाल सुनामी आई थी, जिससे भारत और पड़ोसी देशों जैसे श्रीलंका और इंडोनेशिया में जीवन और संपत्ति का भारी नुकसान हुआ।
  • भूकंप  महासागर के केंद्र में प्रारम्भ हुआ था, जिसने इस विनाशकारी सुनामी को जन्म दिया। इसकी तीव्रता 9.1 और 9.3 के बीच मापी गयी थी और यह लगभग 10 मिनट के समय तक जारी रहा।
  • एक रिपोर्ट के अनुसार, यह रिकॉर्ड किया गया दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा भूकंप था।

गुजरात भूकंप :-

गुजरात के कच्छ में महसूस हुए भूकंप के झटके, 3.4 रही तीव्रता; जानमाल का कोई  नुकसान नहीं - minor earthquake in kutch gujarat no loss of life or property
  • वर्ष 2001
  • प्रभावित क्षेत्र: भुज, अहमदाबाद, गांधीनगर, कच्छ, सूरत, जिला सुरेंद्रनगर, जिला राजकोट, जामनगर और जोडिया हैं।
  • मृत्यु दर: 20,000 से अधिक।
  • 26 जनवरी, 2001 की सुबह, गुजरात भारी भूकंप से प्रभावित हुआ।
  • भूकंप की तीव्रता रियेक्टर पैमाने पर 7.6 से 7.9 की रेंज में थी और यह 2 मिनट तक जारी रहा था।
  • इसका प्रभाव इतना बड़ा था कि लगभग 20,000 लोगों ने अपने जीवन को खो दिया था।
  • अनुमान यह है कि इस प्राकृतिक आपदा में लगभग 167,000 लोग घायल हुए थे और लगभग 400,000 लोग बेघर हो गए थे।

ओडिशा में महाचक्रवात :-

महाचक्रवात 'अम्फान' हुआ कुछ कमजोर, बंगाल और ओडिशा में लाखों लोग भेजे गए  सुरक्षित स्थान पर
  • वर्ष 1999
  • प्रभावित क्षेत्र: भद्रक तटीय जिलें, केंद्रपारा, बालासोर, जगतसिंहपुर, पुरी, गंजम आदि।
  • मृत्यु : 10,000 से अधिक।
  • यह 1999 में ओडिशा राज्य को प्रभावित करने वाले सबसे खतरनाक तूफानों में से एक है। इसे पारादीप चक्रवात या सुपर चक्रवात 05बी के रूप में जाना जाता है।
  • जब यह चक्रवात 912 एमबी की चरम तीव्रता पर पहुँच गया, तो यह उत्तर भारतीय बेसिन का सबसे मजबूत उष्ण कटिबंधीय चक्रवात बन गया था।

लातूर भूकंप

  • वर्ष: 1993
  • प्रभावित क्षेत्र: उस्मानाबाद और लातूर के जिले।
  • मृत्यु : 20,000 से अधिक।
  • वर्ष 1993 का यह भूकंप सबसे घातक भूकंपों में से एक था, जिसने महाराष्ट्र के लातूर जिले को अधिक प्रभावित किया था।
  • भूकंप की तीव्रता को 6.4 रिक्टर पैमाने पर मापा गया था।

महान अकाल :-

  • वर्ष: 1876-1878
  • प्रभावित क्षेत्र: मद्रास, मैसूर, हैदराबाद, और बॉम्बे।
  • मृत्यु : 3 करोड़।
  • 1876-78 में देश के दक्षिणी और दक्षिण-पश्चिमी हिस्सों में एक बड़ा अकाल पड़ा था, इस अकाल ने लगभग 3 करोड़ लोगों की जान ले ली थी।
  • यह अकाल चीन में पहली बार शुरू हुआ, बाद में यह भारत में शुरू हुआ और 1876 और 1878 के बीच की अवधि में इसने लाखों लोगों को प्रभावित किया।

कोरिंगा चक्रवात :-

  • वर्ष: 1839
  • प्रभावित क्षेत्र: कोरिंगा जिला।
  • मृत्यु : 3.2 लाख लोग।
  • आंध्र प्रदेश के कोरिंगा शहर के बंदरगाह में कोरिंगा चक्रवात  से भारत अत्यधिक प्रभावित हुआ था।
  • आंध्र प्रदेश के गोदावरी जिले के छोटे से शहर कोरिंगा में इस चक्रवात ने तबाही मचा दी थी। जिसने पूरे शहर को नष्ट कर दिया था।

कलकत्ता चक्रवात :-

  • वर्ष: 1737
  • प्रभावित क्षेत्र: कलकत्ता के निचले इलाके।
  • मृत्यु : 3 लाख से अधिक।
  • हुगली नदी चक्रवात जिसने 1737 में कलकत्ता को प्रभावित किया था।
  • बहुत से लोग मारे गए, बड़ी संख्या में जहाजों और लगभग 20,000, बंदरगाहों पर डॉक क्षतिग्रस्त हो गए थे।
  • इसे कलकत्ता चक्रवात के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि कलकत्ता क्षेत्र के निचले इलाके चक्रवात के कारण बुरी तरह प्रभावित हुए थे।

बंगाल अकाल :-

  • वर्ष 1970, 1773
  • प्रभावित क्षेत्र: बंगाल, ओडिशा, बिहार।
  • मृत्यु : 1 करोड़।
  • यह अकाल 1770 से 1773 तक लगभग 3 वर्षों तक लगातार जारी रहा।
  • भारत को अब तक प्रभावित करने वाली सबसे बड़ी प्राकृतिक आपदाओं में से एक इस अकाल में भूख, प्यास और बीमारी के कारण लगभग 1 करोड़ लोगों की मौत हो गई।

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